
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विभागीय सजा के खिलाफ दायर पुनरीक्षण (रिव्यू) याचिका को कड़े शब्दों में खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अलग-अलग वकीलों के माध्यम से बार-बार पुनरीक्षण याचिका दायर करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इससे अदालत का बहुमूल्य समय नष्ट होता है। यह आदेश चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के रवैये पर गंभीर नाराजगी जताई। प्रारंभ में कोर्ट ने 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का संकेत दिया था, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील द्वारा बार-बार बिना शर्त माफी मांगे जाने पर जुर्माने की राशि घटाकर 50 हजार रुपये कर दी गई। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह राशि शासकीय विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी, गरियाबंद को दी जाए। यदि तय समय सीमा के भीतर राशि जमा नहीं की जाती है, तो इसे भू-राजस्व की तरह वसूला जाएगा। यह मामला जशपुर निवासी संजीव यादव से जुड़ा हुआ है। संजीव यादव के खिलाफ विभागीय जांच की गई थी, जिसके बाद उन्हें चार वार्षिक वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी गई थी। इस विभागीय कार्रवाई को चुनौती देते हुए उन्होंने वर्ष 2018 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 23 जनवरी 2025 को याचिका खारिज कर दी थी। सिंगल बेंच ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि विभागीय जांच पूरी तरह से नियमों के अनुरूप की गई है और इसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
इसके बाद संजीव यादव ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील दायर की थी। डिवीजन बेंच ने भी 18 मार्च 2025 को अपील खारिज करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया था। इसके बावजूद याचिकाकर्ता ने हार नहीं मानी और उसी आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट ने अपने ताजा आदेश में स्पष्ट कहा कि रिव्यू याचिका अपील का विकल्प नहीं होती। पुनरीक्षण तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट और प्रत्यक्ष त्रुटि हो। कोर्ट ने पाया कि याचिका में उठाए गए सभी तर्क पहले ही सिंगल बेंच और डिवीजन बेंच द्वारा सुने जा चुके हैं और उन्हें खारिज किया जा चुका है। ऐसे में उन्हीं मुद्दों को दोबारा उठाना न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग वकीलों के जरिए पुनरीक्षण याचिका दायर करना स्वस्थ न्यायिक परंपरा के अनुरूप नहीं है। इससे न केवल न्यायालय का समय व्यर्थ होता है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव भी पड़ता है।
गौरतलब है कि डिवीजन बेंच के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को भी सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त 2025 को खारिज कर दिया था। इसके बावजूद उसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिव्यू याचिका दायर की गई, जिसे अब सख्ती से खारिज कर दिया गया है।



