छत्तीसगढ़

नहीं कम हुई है जय-वीरू के बीच की दूरियां, भूपेश बघेल के सरगुजा दौरे में खुलकर सामने आई कांग्रेस की गुटबाजी, एकजुटता के दावों पर सवाल

अंबिकापुर । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता से विदाई के बाद पहली बार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सोमवार को सरगुजा संभाग के दौरे पर पहुंचे। उनका यह दौरा राजनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा था, लेकिन अंबिकापुर पहुंचते ही कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान और गुटबाजी एक बार फिर खुलकर सामने आ गई। सड़क मार्ग से उदयपुर और लखनपुर होते हुए देर रात अंबिकापुर पहुंचे भूपेश बघेल के स्वागत में कांग्रेस संगठन का एक बड़ा वर्ग नदारद दिखाई दिया।

उदयपुर और लखनपुर, जहां ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों पर पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव समर्थकों का वर्चस्व माना जाता है, वहां भूपेश बघेल के स्वागत के लिए सिंहदेव से जुड़े किसी भी कांग्रेस नेता या कार्यकर्ता की मौजूदगी नहीं दिखी। यही स्थिति अंबिकापुर में भी देखने को मिली। जिला कांग्रेस कमेटी के साथ-साथ शहर और ग्रामीण ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों में भी सिंहदेव समर्थक पदों पर काबिज हैं, इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री के स्वागत या आगवानी में उनकी कोई भागीदारी नहीं रही। इसके विपरीत, पूर्व मंत्री अमरजीत भगत से जुड़े कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता भूपेश बघेल के स्वागत को लेकर सक्रिय नजर आए। बताया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री के प्रस्तावित सरगुजा दौरे को लेकर अमरजीत भगत लगातार जिला कांग्रेस कार्यालय पहुंचते रहे और वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से मुलाकात भी की। उन्होंने संगठन स्तर पर समन्वय बनाने का प्रयास किया, लेकिन भूपेश बघेल के अंबिकापुर आगमन तक यह कोशिश कोई ठोस परिणाम नहीं दे सकी।

गौरतलब है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव इन दिनों सरगुजा में मौजूद नहीं हैं। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि उनके समर्थक कम से कम शिष्टाचार के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री के स्वागत में शामिल होंगे। लेकिन ऐसा न होना कांग्रेस की गहरी गुटबाजी की ओर साफ इशारा करता है। कांग्रेस शासनकाल के दौरान मुख्यमंत्री पद के ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच कथित मनमुटाव की चर्चाएं लंबे समय तक सुर्खियों में रहीं। हालांकि दोनों नेताओं ने कभी सार्वजनिक मंच से एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं की, लेकिन संगठन के भीतर गुटबाजी की बातों को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सका।

उसी दौर में सरगुजांचल की विकास योजनाओं को लेकर भी विवाद सामने आए थे। आरोप लगे कि क्षेत्र की योजनाओं के प्रति शासन स्तर पर अपेक्षित रुचि नहीं दिखाई गई, फंड की कमी के चलते कई कार्य अधूरे रह गए और नगर निगम अंबिकापुर क्षेत्र की प्रस्तावित योजनाओं के लिए भी पर्याप्त राशि नहीं मिली। इन सभी कारणों का असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ा। सरगुजा संभाग की सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बाद में नगरीय निकाय चुनावों में भी पार्टी को पराजय झेलनी पड़ी।

सरकार जाने के बाद कांग्रेस नेताओं ने एकजुटता और संगठन को मजबूत करने की बात जरूर कही, लेकिन भूपेश बघेल के इस सरगुजा दौरे ने इन दावों की पोल खोल दी। जिस समय पार्टी को नए सिरे से खुद को मजबूत करने की जरूरत है, उसी समय अंदरूनी गुटबाजी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनती नजर आ रही है। भूपेश बघेल का यह दौरा न केवल संगठनात्मक कमजोरी को उजागर करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि सरगुजा में कांग्रेस की राह अभी आसान नहीं होने वाली।

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