छत्तीसगढ़

सुलगते सवाल: क्यों मंत्री नहीं बने ये बड़े नेता ? किसके लिए खाली है एक कुर्सी ?

रायपुर छत्तीसगढ़ में 15 सालों तक राज करने वाली बीजेपी ने दो हफ्ते पहले धमाकेदार तरीके से चुनाव में जीत के साथ वापसी की। ‘पंजे’ से लड़कर ‘कमल’ खिलने के बाद कई चेहरे भी खिल उठे थे। 15 सालों तक सूबे की सियासत में बीजेपी का चेहरा रहे इन चेहरों को उम्मीद थी कि उनके बिना ‘सरकार’ नहीं बनेगी। लेकिन उम्मीदों के टूटने की शुरुआत हुई मुख्यमंत्री के चुनाव के साथ। तमाम किंतु-परंतु के बाद बड़े-बड़े सियासी पंडितों को लग रहा था कि रमन सिंह ही प्रदेश के मुखिया होंगे। लेकिन अपने हर फैसले से चौंकाने वाली बीजेपी ने आदिवासी सीटों में जीत के लिए इस वर्ग को ईनाम देते हुए लोकसभा चुनाव के लिए चाल चल दी। विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री के रुप में कमान मिल गई। पार्टी में अब तक सबसे बड़े चेहरे रहे रमन सिंह को विधानसभा का अध्यक्ष बनाकर सम्मान दे दिया गया।

इसके साथ ही पहली बार विधायक बनने वाले विजय शर्मा और अरुण साव को डिप्टी सीएम बना दिया गया। अब संभागों के साथ जातीय समीकरण की दुहाई देते हुए सभी पुराने चेहरे अपने लिए अवसर तलाशने लगे। लेकिन पार्टी ने एक बार फिर सूबे के प्रदेश अध्यक्ष के रुप में बस्तर के पहली बार के विधायक किरण देव सिंह को मौका दे दिया। करीब दस दिनों तक चले उठापटक और दिल्ली से रायपुर तक कई दौर की चर्चा के बाद 9 मंत्रियों को भी शपथ दिला दी गई। लेकिन आश्चर्यजनक रुप से अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, पुन्नूलाल मोहले, धरमलाल कौशिक, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, भैय्या लाल रजवाड़े, रेणुका सिंह और गोमती साय जैसे बड़े चेहरे राह देखते रह गए। मंत्री पद की शपथ लेने के लिए आने वाले कॉल के इंतजार में इंतहा हो गई। जब खबर आई कि उनका नाम लिस्ट में नहीं है, तो सबके नीचे से जमीन खिसक गई। विष्णुदेव मंत्रिमंडल में करीब आधे नए चेहरों को जगह मिली है। नए मंत्रिमंडल के चेहरे तय कर पार्टी ने बता दिया कि बीजेपी में कद बड़ा रहने से पद भी मिल जाए ये जरूरी नहीं।

बीजेपी के पितृ पुरुष कहे जाने वाले दिवंगत नेता लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्रवाल 1998, 2003, 2008 और 2013 में विधायक चुने गए। 2018 में हार के बाद इस बार शैलेष पांडेय को हराकर फिर बिलासपुर से चुनाव जीते। लेकिन रमन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहने के दौरान आंख फोड़वा कांड, गर्भाशय कांड जैसे मामले ने उनके साथ सरकार की छवि भी खराब की थी। नगरीय प्रशासन मंत्री रहते हुए बिलासपुर को धूलपुर बनाने और सीवरेज परियोजना से आम जनता के गुस्से का शिकार हुए। रमन सरकार के सबसे भरोसेमंद और तगड़े मैनेजमैंट के लिए विख्यात राजेश मूणत 2003, 2008 और 2013 में विधायक बने। लगातार 15 साल मंत्री रहे। लेकिन 2018 के चुनाव में विकास उपाध्याय से हारने के बाद उनका कद छोटा होता गया। इस बार जीत के बाद भी साय कैबिनेट में जगह नहीं मिली। 1996, 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा सांसद रहे पुन्नूलाल मोहले रमन सरकार में एससी वर्ग का चेहरा थे। 3 बार के मंत्री 4 बार सांसद मोहले 7 वीं बार विधायक चुने गए।

लेकिन विष्णुदेव साय कैबिनेट में जगह नहीं मिली। पार्टी ने उनकी जगह दयालदास बघेल को मौका दिया। तेज-तर्रार छवि वाले और ओबीसी चेहरे अजय चंद्राकर 1998, 2003, 2013, 2018 और 2023 में 5 वीं बार विधायक बने। 2003 और 2013 में रमन सरकार में मंत्री रहे अजय चंद्राकर को ओबीसी चेहरा होने का फायदा नहीं मिला। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहने के साथ पांच बार के विधायक और एक बार के सांसद विक्रम उसेंडी को भी जीत के बाद पार्टी ने कैबिनेट में जगह नहीं दी। बस्तर से बीजेपी का आदिवासी महिला चेहरा रहीं लता उसेंडी और सरगुजा के सूरजपुर से जीते भैयालाल राजवाड़े को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। उनकी जगह पार्टी ने राजवाड़े समाज से नए चेहरे लक्ष्मी राजवाड़े को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। विधानसभा अध्यक्ष के अलावा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके धरमलाल कौशिक को पार्टी का अनुभवी ओबीसी चेहरा होने के बावजूद दरकिनार किया गया। 1998, 2008, 2018 और 2023 में विधायक बने धरमलाल कौशिक को बिलासपुर से अरुण साव के डिप्टी सीएम बन जाने की वजह से मौका नहीं मिला। इसी तरह मोदी कैबिनेट में केंद्रीय राज्य मंत्री रहीं रेणुका सिंह को भी मंत्री पद नहीं मिला, जबकि वे पहले प्रदेश में मंत्री रह चुकी हैं। इसी तरह सांसद गोमती साय को भी मंत्री नहीं बनाया गया।

किसके लिए खाली है एक कुर्सी?

म्युजिकल चेयर की तरह विष्णुदेव साय कैबिनेट में मंत्री पद की एक सीट खाली रखी गई है। इस कुर्सी के इर्द-गिर्द कई चेहरों को लेकर उनके समर्थकों में उम्मीदें बंधी हैं। कोई कह रहा है कि लोकसभा में टिकट नहीं मिली, तो उनके लिए खाली रखी गई है। किसी के पास उम्र का हवाला है, किसी के पास सीनियरिटी की दलील, किसी के पास अपनी लंबी जीत की प्रोफाइल, किसी को अपने साथ जातिगत समीकरण होने का भ्रम है, तो किसी को महिला होने का। लेकिन वक्त की चाक पर इन चेहरों के बीच घूमती हुई इस कुर्सी पर कौन बैठेगा, ये तो वक्त ही बताएगा? तब तक सिर्फ कयास, इंतजार, आस और उम्मीद। क्योंकि बीजेपी में इसके अलावा और कुछ करने की गुंजाइश भी नहीं।

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