Uncategorized

श्रावण मास का पहला सोमवार आज,ऐसे करें महादेव को प्रसन्न

शास्त्रों में कहा गया है कि-‘श्रावणे पूजयेत शिवम्’। अर्थात सावन के महीने में शिव पूजा विशेष रूप से फलदाई है,वह जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। काल के भी महाकाल शिव के बारे में कहा गया है कि सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। कहा गया है, ”रुतम -दुःखम द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः’ यानि भगवान शिव सभी दुखों को नष्ट कर देते हैं। श्रावण में शिव की अर्चना करेंगे तो धरती पर भी सभी दुखों का शमन होगा।ऐसा माना जाता है कि इस माह में की गयी शिव पूजा तत्काल शुभ फलदायी होती है। इसके पीछे स्वयं शिव का ही वरदान ही है।सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

पार्वतीजी की तपस्या से शिव हुए प्रसन्न –

मान्यता है कि पर्वतराज हिमालय के घर पर देवी सती का पार्वती के रूप में दोबारा जन्म हुआ था। जगत जननी पार्वती ने भगवान शिव को फिर से पतिरूप में पाने के लिए कठोर व्रत,उपवास करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। इसके बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर माता पार्वती की मनोकामना को पूरा करते हुए उनसे विवाह किया था। सावन के महीने में ही भगवान भोले शंकर ने देवी पार्वती को पत्नी माना था इसलिए भगवान शिव को सावन का महीना बहुत ही प्रिय है।

श्रावण मास में हुआ समुद्र मंथन –

समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक विष निकला तो उसके ताप से सभी देवता भयभीत हो गए। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस विष का पान कर लिया और उसे अपने गले में ही रोक लिया जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाये।विष के ताप से व्याकुल शिव तीनों लोको में भ्रमण करने लगे किन्तु वायु की गति भी मंद पड़ गयी थी इसलिए उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिली। अंत में वे पृथ्वी पर आये और पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके नीचे बैठ गए जहां कुछ शांति मिली। शिव के साथ ही सभी देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवन दायिनी वायु प्रदान करने लगे। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली। इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने की परंपरा बन गई।

श्रीराम ने किया अभिषेक – 

एक अन्य मान्यता के अनुसार श्रावण मास में भगवान श्री राम ने भी सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। बस तभी से श्रावण में जलाभिषेक करने की परंपरा भी जुड़ गई। शिव का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु हरिद्वार,काशी और कई जगह से गंगाजल लेकर कावड़ यात्रा करते हैं।

श्रावण पूजा का महत्व –

श्रावण में एक महीने तक शिवालयों में स्थापित, शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रूद्रभिषेक करें। यह शिव को अत्यंत प्रिय है। वहीं उत्तरवाहिनी गंगाजल, पंचामृत का अभिषेक भी महाफलदायी है। कुशोदक से व्याधि शांति, जल से वर्षा, दही से पशुधन, ईख के रस से लक्ष्मी, मधु से धन, दूध से एवं एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से भगवान शिव का अभिषेक पुत्र व यश वृद्धि होती है।

ऐसे करें पूजन –

श्रावण मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नादि से निवृत्त होकर शिवालय जाएं। पंचाक्षरी मंत्र के साथ दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, पंचामृत, इत्र, फलों के रस, गंगाजल के बाद शुद्ध जल से अभिषेक कराएं।

चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से महादेव का अभिषेक करें। इसके बाद फूल, दूर्वा, बिल्वपत्र, आकपुष्प, धतूरा, कनेल आदि चढ़ाएं। अभ्रक, भांग आदि अर्पित करने के बाद नैवेद्य, फलों से भोग लगाएं। श्रीफल भेंट करने के बाद धूप-दीप से आरती करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button