अस्पताल में बेटियों के जन्म पर बंटवाती हैं मिठाई, डॉ. शिप्रा नहीं लेती हैं फीस
पीएम मोदी भी कर चुके हैं तारीफ, गरीब बच्चियों को पढ़ाती भी हैं डॉ. शिप्रा आप अक्सर अस्पतालों में हंगामे की खबरें सुनते हैं। इस विवाद का कारण अमूमन लंबा-चौड़ा बिल होता है। डॉक्टरों की मोटी फीस के कारण ही कई बार गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लोग अच्छे डॉक्टरों से इलाज नहीं करा पाते।
इन सब के बीच समाज में कुछ ऐसे डॉक्टरों भी हैं, जो लोगों की मदद और इलाज को लेकर हमेशा तत्पर रहते हैं। ये डॉक्टर न केवल निस्वार्थ भाव से मरीजों का इलाज करते हैं, बल्कि मुफ्त में दवाएं भी बांटते हैं। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं यूपी के वाराणसी में रहने वालीं डॉ. शिप्रा धर श्रीवास्तव।
वह पिछले कई सालों से ये काम कर रही हैं। उनके नर्सिंग होम में अगर किसी दंपती के घर बेटी जन्म लेती है तो वो पूरे अस्पताल में मिठाईयां बंटवाती है और खुशियां मनाती हैं। डॉ. शिप्रा के इस काम में उनके पति डॉ. एम के श्रीवास्तव भी बखूबी साथ देते हैं।
डॉ. शिप्रा धर श्रीवास्तव ने वाराणसी से ही एमबीबीएस और एमएस किया है। जब उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की तो उनके पास कई ऐसे मामले आए जिनमें लोग बेटियों के जन्म को लेकर उतने उत्साहित नजर नहीं आए।
इसके उलट बेटे के जन्म पर लोग स्टॉफ को न केवल पैसे देते, बल्कि पूरे अस्पताल में मिठाइयां बंटवाते थे। यह देख डॉ. शिप्रा को बुरा लगता। बेटियों के जन्म पर लोगों की इस सोच को बदलने के लिए उन्होंने खुद फीस नहीं लेने और स्टॉफ को मिठाई बंटवाने का फैसला किया। भ्रूण हत्या जैसी कुरीति ने भी डॉ. शिप्रा पर गहरा असर डाला।
उन्होंने गर्भ में ही बेटियों को मार देने और उनके जन्म के बाद उनकी जान ले लेने की लोगों की सोच में बदलाव के लिए यह प्रयास शुरू किया। डॉ. शिप्रा बताती हैं कि लोगों में बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच अब भी है। जब परिजनों को पता चलता है कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते हैं। गरीबी के कारण कई लोग तो रोने भी लगते हैं।
इसी सोच को बदलने की वह कोशिश कर रही हैं, ताकि अबोध शिशु को लोग खुशी से अपनाएं। वह बेटी के जन्म पर फीस नहीं लेती हैं। बेड चार्ज भी नहीं लिया जाता, यदि ऑपरेशन करना पड़े तो वह भी मुफ्त करती हैं।