छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बचाये रखना हम सबका कर्त्तव्य: सोनू साहू

आरंग। पूरे अंचल भर में पारम्परिक तरीके से मनाई जा रही हैं छेरछेरा का पर्व इस दिन बच्चे हाथ में थैला लेकर घरों में घूम-घूमकर छेर, छेरा! माई कोठी के धान ला हेर फेरा बोलकर धान-चावल का दाना मांगते हैं। वहीं लोग भी उत्साह पूर्वक बच्चों को दान दिया।यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न का दान मांगते हैं। वहीं गांव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं।

 

छत्तीसगढ़ में अनेकों ऐसे पर्व है जो लोगों को एक अच्छी सिख दे जाती है , इसी वजह है कि छत्तीसगढ़ के लोग आपस में प्रेम और सादगी से जीवन यापन करते हैं ।
छत्तीसगढ़ में पूरे वर्ष भर त्योहार ही त्योहार है मानो धागे में पिरोया हुआ एक माला हो , छेरछेरा पर्व खरीब की फसल काटकर किसान घर में धान भरने के पश्चात मनाते हैं , लोग अपनी धन का दान करने में अपना हित मानते हैं यहि वजह है कि लोग इस दिन दान करने में अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं ।

वही बच्चे सुबह से ही इस गौरवशाली परम्परा का निर्वहन करते हुए टोलिया बनाकर गाँव के प्रत्येक मुहहलो में घूमे और आवाज लगाया छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा,जिससे इस सुनहरी आवाज की गूंज से पूरा गांव झूम उठा नन्हें नन्हें बच्चे टोलिया में एक साथ बेहद ही सभ्यतापूर्वक नजर आ रहे थे , जिससे देख संस्कृति कुछ अलग अन्दाज में दिख रही थी, वही दूसरी ओर युवाओ समेत कई बुजुर्गों ने भी इस गौरव शाली परंपरा को निर्वहण करने में भूमिका निभाई और गाजे बाजे के साथ समूहो में गांव के भ्रमण किये इसी कड़ी में सोनू कुमार साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ कि संस्कृति को सहेजकर और संजोकर रखने में हम सबका अहम भूमिका होती है ।

हम युवाये ही आज की इस आधुनिकता के दुनिया मे इतने डूब चुके है कि अपने संस्कृति और सभ्यता को भुल गए है
अतः संस्कृति को बचाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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