ग्राम पंचायत का सच्चा सेवक होता है सरपंच: गोपाल धीवर
आरंग। ग्रामीण भारत की लोकत्रांत्रिक इतिहास की वस्तुस्तिथि साझा करते हुए रायपुर जिला सरपंच संघ अध्यक्ष श्री गोपाल धीवर(गोढ़ी) कहते है कि 7 दशक से भी ज्यादा समय बित जाने के बाद भी ग्राम पंचायते बहुत पिछड़ी हुई है,इसका प्रमुख कारण शासन एवम प्रशासनिक तंत्रों की ग्राम विकास के प्रति कमजोर इच्छा शक्ति तथा असहयोग की नीति है ।
जो पंचायती राज के आ जाने के बाद भी ग्राम पंचायत को, अधिकार सम्पन्न आत्मनिर्भर संस्था के रूप में विकसित होने नही दे रही है!
अक्सर देखा गया है कि राजस्व विभाग ग्रामपंचायत की अधिकारों में हस्तक्षेप करते रहते है जबकि पंचायतीराज अधिनियम 1993 की धारा 56 में स्पष्ट किया गया है कि, जब तक सरपंच ग्राम पंचायत उस बात को लेकर तहसीलदार को संसूचित नही करेगा, तब तक तहसीलदार के द्वारा ग्रामपंचायत की कार्यो में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप व दखलनदाज़ी नही की जाएगी फिर भी पटवारी तहसीलदार तथा राजस्व विभाग के द्वारा ग्राम पंचायत के विरुद्ध असवैधानिक कृत किया जाता है।
जिससे स्वतंत्रत भारत मे गुलामी की तस्वीर उभरती जा रही है, और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (बापू) जी के ग्राम स्वराज का सपना, अवसर परस्त सियासत खोरो के,स्वार्थ की भेंट चढ़ती जा रही है।
*सरपंच ग्रामपंचायत की सर्वांगीण तथा चहुमुखी विकास को निष्ठा पूर्वक सम्पन्न करने वाला, सवैधानिक व सच्चा व्यवस्थापक होता है। इसलिए भी इन दमनकरी नकारात्मक ताकतों का मुहतोड़ जवाब देना आवश्यक हो जाता है।
क्या है समाधान ?
भूराजस्व संहिता 1959 को स्वतंत्र भारत मे जनता की लोकतांत्रिक अधिकारों की संरक्षण कर पाने में पर्याप्त नही पाया गया तब जा कर पंचायतीराज अधिनियम 1993 का आविर्भाव हुआ ! इसलिए प्रशासन तंत्रों को पंचायतीराज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए नीतिसंगत आवश्यक भागीदारी देनी होगी, तब जाकर ग्रामपंचायत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, इंदिराजी, राजीव जी के सपनो को साकार करने वाली उत्कृष्ट ग्रामीण भारत की सभ्यता को विकसित करने वाली संस्था के रूप में, स्थापित होगी।