छत्तीसगढ़ की डॉ. प्रज्ञा चंद्राकर ने प्रदेश का बढ़ाया मान, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हुआ चयन
महासमुंद। डॉ. प्रज्ञा चंद्राकर का चयन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए हुआ है। महासमुंद की बेटी प्रज्ञा चंद्राकार अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय कोरोना वायरस और उसके वैक्सीन पर काम करेगी। प्रज्ञा की इस उपलब्धि पर परिवार सहित महासमुन्द में खुशी की लहर है।
प्रज्ञा ने प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया है। विश्व इस समय कोरोना महामारी से जूझ रहा है। कोरोना से लोगों को बचाने के लिए तरह तरह के दवाई बनाया जा रहा है। वहीं वैक्सीनेशन पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि वैक्सीन ही सबसे कारगर मानी जा रही है और वैक्सीन से ही कोरोना जैसे गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है।
महासमुन्द की रहने वाली डॉक्टर प्रज्ञा चंद्राकर का चयन विश्व के जाने माने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हुआ है। यहां महासमुन्द की बेटी डॉ. प्रज्ञा कोविड-19 वायरस पर काम करेगी और वैक्सीन निर्माण में भी अहम भूमिका निभाएंगी। बता दें कि जिले के क्लबपारा में रहने वाले चंद्राकर परिवार की दो बहन और एक भाई में प्रज्ञा चंद्राकर सबसे बड़ी बेटी है।
प्रज्ञा के पिता गजानंद चंद्राकर शिक्षक है, माँ मंजू चंद्राकर गृहणी है। प्रज्ञा चंद्राकर बचपन से ही मेधावी छात्र रही हैं। हर साल क्लास में प्रथम आती रही है। स्कूल में अच्छे परिणाम के लिए कई बार उन्हें सम्मनित किया गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा महासमुंद के वेडनर मेमोरियल स्कूल से हुई है। उसके बाद उन्होंने 10वीं से 12वीं तक कि पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से पूरा किया।
प्रज्ञा ने स्नातक चंडीगढ़ विश्वविद्यालय व परास्नातक तमिलनाडु के अन्नामलाई विश्वविद्यालय से पूर्ण किया। सीएसआईआर-जेआरएफ में आल इंडिया रैंक 55 प्राप्त कर प्रज्ञा ने लखनऊ के सीएसआईआर- सीडीआरआई से अपना पीएचडी पूर्ण किया। पीएचडी में पब्लिकेशन के आधार पर उसका सलेक्शन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए हुआ है।
वर्तमान में प्रज्ञा चंद्राकार अमेरिका के न्यूयॉर्क के अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च फेलो के पद पर कार्यरत है और ट्यूबेरकुलेसिस और काला अजार पर रिसर्च कर रही है।
प्रज्ञा चंद्राकर ने बताया कि उन्होंने नहीं सोचा था कि हार्वर्ड में चयन हो जाएगा, चयन होने पर खुशी है। सफलता के लिए पैशन जरूरी होता है। इसके लिए मैंने काफी मेहनत किया है। पीएचडी के पब्लिकेशन के आधार में चयन हुआ है। मेरा पैशन मुझे हॉर्वर्ड ले गया है। मुझे ऐसा लगता है। हार्वर्ड में मुझे बेहतर करना है। वहां के सुविधा को अच्छे से उपयोग कर अच्छा रिसर्च करना चाहती हूं, ताकि जब यहां से मैं भारत लौटू तो एक एमिनेंट साइंटिस्ट बन कर लौटू। अपने देश के लिए बेहतर कर सकू ये मेरा हमेशा कोशिश रहेगा। अभी वर्तमान में अल्बर्ट आइंस्टीन कार्यरत हूं, टीबी बीमारी के टीका निर्माण में काम कर रही हूं।
जब मैं चंडीगढ़ में पीएचडी कर रही थी, वहां मुझे मेरे मेंटर सुसानताकार ने कहा था कि गुड साइंस पर काम करना है, उस समय मैं गुड साइंस क्या होता है, ये ठीक से नहीं समझ पा रही थी। गुड साइंस क्या होता है उनसे मैंने सीखा। मेरे मम्मी पापा ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है। उनका विश्वास ही मुझे यह तक ले आया।
इस उपलब्धि पर उन्होंने कहा कि इन उपलब्धि का श्रेय सबसे पहले भगवान को देना चाहती हूं, वैसे साइंस मेरे लिए भगवान है। दूसरा श्रेय पीएचडी के मेरे मेंटर डॉक्टर सुसानताकार को देना चाहूंगी जिन्होंने मुझे गुड साइंस क्या होता है मुझे बताये थे। साथ ही उन्होंने बताया कि साइंस के लिए धैर्य और धीरज की परिभाषा सिखाए।
मेरी रोल मॉडल मेरी क्यूरी रही है, जब उन्होंने रेडिएशन पर कार्य किया था और उन्हें दो बार नोबल अवार्ड मिला था। वो पहली महिला साइंटिस्ट थी, वो मुझे बहुत इंस्पायर करती है। अभी पढ़ाई करने वाले विधार्थियों को कहना चाहूंगी कि स्कूल लाइफ में ही किसी चीज के लिए पैशन पैदा करना चाहिए है। स्कूल लाइफ में ही एक चीज फीगर आउट कर लो कि आपको करना क्या है।
आप कोई भी फील्ड को 100 प्रतिशत देते हैं तो बाद में वो फील्ड आपको भी 100 प्रतिशत लौटता है। साइंस एक सोच है और सोच के साथ एक जज्बा है कुछ अच्छा करने का। प्रज्ञा को पढ़ाने वाले टीचर ने बताया कि प्रज्ञा शुरू से ही कुछ अलग करने की चाह रखने वाली छात्रा थी।
उसको देखकर ऐसा लगता था कि इसमें कुछ खास बात है। पढ़ाई के दौरान ही प्रज्ञा ने कहा था उसे साइंटिस्ट बनाना है और प्रज्ञा अपने मेहनत से सफल भी हुई है। प्रज्ञा का हार्वर्ड में सलेक्शन होना एक मिशाल है। जो लोग ये सोचते है कि लड़की को ज्यादा नहीं पढ़ाना है, उनके लिए प्रज्ञा चन्द्राकार एक मिसाल है।