छत्तीसगढ़ में एसडीएम कोर्ट ने सुनाया फैसला-नहीं बिकेगी एसबीआर कालेज के जमीन
बिलासपुर। बिलासपुर एसडीएम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में एसबीआर कालेज की जमीन की खरीदी-बिक्री पर रोक लगा दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रस्ट के उद्देश्यों को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि कालेज परिसर की खाली जमीन का उपयोग बीते 40-50 वर्षाें से महाविद्यालय के छात्र खेल मैदान के रूप में कर रहे हैं।
यह कहना उचित नहीं कि जमीन पर अतिक्रमणकारियों की नजर है और कब्जा हो जाएगा। कालेज प्रबंधन की देखरेख में जमीन सुरक्षित है और अध्ययनरत छात्र-छात्राएं खेल मैदान के रूप में उपयोग कर रहे हैं। लिहाजा ट्रस्ट की जमीन को बेचने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गुस्र्वार को सुबह 11 बजे एसडीएम देंवेंद्र पटेल ने यह फैसला सुनाया। एसबीआर कालेज ट्रस्ट ने दायर मामले में बताया था कि कालेज की जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है। कभी भी रसूखदार कब्जा कर सकते हंैं।
अतिक्रमण की आशंका को मुद्दा बनाते हुए उक्त जमीन की बिक्री की अनुमति मांगी थी। ट्रस्टी बजाज परिवार के सदस्य अतुल बजाज ने ट्रस्ट के गठन और कालेज मैदान की बिक्री को लेकर कोर्ट में मामला दायर किया था। निचली अदालत के अलावा कालेज जमीन बिक्री के निर्णय के खिलाफ एसडीएम कोर्ट में भी वाद दायर किया था। अतुल के वाद पर सुनवाई के बाद सिविल कोर्ट ने स्थगन आदेश की मांग को खारिज कर दिया था। तब निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उनहोंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्र्ट से याचिका खारिज होने के बाद फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एसबीआर कालेज की स्थापना ट्रस्ट ने वर्ष 1972 में की थी। कालेज के सामने ट्रस्ट की तकरीबन ढाई एकड़ जमीन है। जमीन का उपयोग पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं खेल मैदान के रूप में कर रहे हैं। ट्रस्ट का उद्देश्य भी जमीन का उपयोग शैक्षणिक गतिविधियों के लिए करने की है। लिहाजा जमीन बेचकर दूसरी जगह जमीन खरीदने की ट्रस्ट का दावा उचित प्रतीत नहीं होता।
0 गठन के बाद 2014 तक ट्रस्ट में सिद्धान्तों और ट्रस्टियों में भी किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ।
0 वर्ष 2014 के बाद एकाएक नए सदस्य सामने आ गए। अपने जवाब में ट्रस्ट की तरफ से कहा गया कि कोई बैठक नहीं हुई। इसी बीच ट्रस्ट की तरफ से जमीन बिक्री का आवेदन पेश किया जाता है। फिर कोर्ट के समक्ष जानकारी दी कि जमीन बेचने की मंशा नहीं है। इस जवाब के बाद फिर जमीन बिक्री का आवेदन पेश कर दिया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि ट्रस्ट की मंशा और नियत दोनों ठीक नहीं है। जमीन का उपयोग ट्रस्ट के उद्देश्य के अनुसार शैक्षणिक हित में किया जा रहा है।