प्रदेश में तीसरी लहर की संभावनाओं के बीच स्कूल खोलने पर हो विचार
रायपुर। कोरोना की तीसरी लहर कब आएगी और किसे ज्यादा प्रभावित करेगी जैसे सवालों के बीच विभिन्न राज्यों में एक सितंबर से स्कूल खुलने जा रहे हैं। औद्योगिक और कारोबारी जगत में कामकाज पूरी तेजी पर है। सड़कों-बाजारों की भीड़ मार्च, 2020 से पहले जैसी अनियंत्रित है। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि संपर्क से फैलने वाला कोरोना उन बच्चों के घरों तक नहीं जाएगा, जिनके स्वजन कामकाज के लिए घर से बाहर निकल रहे हैं।
इन परिस्थितियों को देखते हुए प्रदेश सरकार को स्कूल खोलने पर भी सकारात्मक रूप से विचार करना चाहिए। यह विचारणीय है कि बच्चे कब तक घरों में बैठे रहेंगे? उनके जीवन में आ रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो गया है।
सतर्कता रखने की जरूरत है। जब कोरोना की तीसरी लहर की आहट आए, तभी एक आदेश में सभी निजी और सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया जाए। नौवीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाओं में पहले ही पढ़ाई हो रही है। प्राथमिक कक्षाओं वाले स्कूलों को भी चरणबद्ध तरीके से खोला जा सकता है।
कोरोना की विकरालता में आई कमी, लगभग सभी उम्र के लिए वैक्सीन की उपलब्धता, कोरोना के प्रति जागरूकता ने विद्यालयों को पुन: खोलने के लिए सकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण किया है। समाज के पास स्वास्थ्य और शिक्षा में से किसी एक के चयन का विकल्प नहीं है।
दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, इसलिए समग्रता से निर्णय लिया जाना चाहिए। इसके लिए अभिभावकों की चिंता और बच्चों के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखना होगा। स्कूल बंद होने से बच्चों पर पड़े असर की भरपाई मुश्किल है। संभव है कि स्कूल खुल जाएं तो क्षति वृद्धि को रोका जा सके। बच्चे लगभग डेढ़ वर्ष बाद मिलकर सामूहिक गतिविधियों में भाग ले सकेंगे।
महामारी के दौरान शैक्षणिक गतिविधियों को बनाए रखने में आनलाइन कक्षा काफी उपयोगी रही, परंतु इसे परंपरागत शिक्षा पद्धति का विकल्प बनने में समय लगेगा। इसके लिए अभी न तो अधोसंरचना है और न ही आम आदमी मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है।
स्कूल खुलने की स्थिति में बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए शिक्षकों को कोविड अनुकूल व्यवहार का प्रशिक्षण और शिक्षाकर्मियों का शत-प्रतिशत टीकाकरण सुनिश्चित करना होगा। इस धारणा को पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता कि बच्चे घर में ही सुरक्षित रहेंगे। घर में भी रहते हैं तो यहां-वहां आते-जाते ही रहते हैं। मैदान या कालोनी में खेलते भी हैं। बाहर आने-जाने वालों से भी बच्चे संक्रमित हो सकते हैं।
अभिभावक बाहर काम करने जाते हैं। वे भी तो संक्रमण ला सकते हैं। जरूरत सुरक्षा जागरूकता और सतर्कता की है। चुनौतियों से भागना समाधान नहीं हो सकता। चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना होगा। यही समय की मांग है।