रायपुर में बड़े धूमधाम से मनाया गया कमरछठ का पर्व ,व्रत को पूरा के लिए श्रद्धापूर्वक जुटीं हुईं थी महिलाएं
रायपुर । छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में पर्व की धूम है। घर घर के आंगन में सुहागिनों ने आस्था की लौ जगाई। कोरोना काल के 2 साल के बाद शायद ये पहला मौका जीवन मे मिलजुलकर मनाने का समय आया। जब लोग अपने करीबियों के हंसी खुशी पर्व हर घर मे मना।
सुबह से ही सभी अपने व्रत को मनाने के लिए श्रद्धापूर्वक जुटीं हुईं थीं।
हलषष्ठी देवी को धरती का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इस दिन हल चले जमीन पर माताएं नहीं चलतीं और हल से जोते हुए जमीन से उपार्जित अन्न का उपयोग नहीं करती हैं। इसलिए ऐसी सामग्री जो स्वमेव ही पैदा हुई होती हैं उनकी डिमांड इस दिन बढ़ जाती है। जिसमें पसहर चावल खास होता है।
सुंदर सुंदर साड़ियां पहनकर करती हैं 16 सिगार
कुछ इस तरह तैयार होती हैं महिलाएं
क्योंकि यह बाजार में काफी कीमत पर मिल पाता है। व्रत व पूजा के लिए एक व्रती को 6 नग दोना, 2 पत्तल, 2 दातुन, 6 खुला पत्ता, 1 कासी फूल लगता होता है। वहीं भैंस का दूध, दही, घी, लाई व 6 प्रकार की भाजी की जरूरत होती है।
इन सामग्रियों के साथ व्रतियों का समूह तालाब (सगरी) खोदकर जल अर्पण कर वरूण देव की पूजा करते है। मान्यता अनुसार पसहर चावल का उपयोग खमरछठ में होता है पर देखा जाए तो यह धान का ही रूप है। इसे सहेजकर रखने के लिए ही संभवतः इस व्रत की शुरुआत हुई होगी।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक कमरछठ जिसका छत्तीसगढ़ में अपना महत्व है।
इसे संतान की लंबी उम्र व स्वस्थ के लिए किया जाता है। आज हलषष्ठी की पूजा की जाती है। भी कहते है।व्रत करने वाली माताएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। सगरी बनाकर सारी रस्में निभाया करती हैं इस मौके पर कमरछठ* *की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अध्र्य देने के बाद वे सभी माताएं अपना व्रत खोलेंगी।