राजधानी में आदिवासियों की आर्थिक नाकेबंदी पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत
रायपुर। सर्व आदिवासी समाज के आह्वान पर सोमवार को प्रदेश के 20 से अधिक जिलों में आयोजित सांकेतिक आर्थिक नाकेबंदी और चक्काजाम पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सही समय पर हस्तक्षेप करते हुए संवाद की प्रक्रिया शुरू करने का भरोसा दिया है, जिससे समस्या फिलहाल जटिल होने से बच गई है, परंतु जिस तरह से आदिवासी समाज के लोग गोलबंद हो रहे हैं, उससे समझा जा सकता है कि मुद्दे को अधिक समय पर टाला नहीं जाना उचित नहीं है।
नौ प्रमुख मांगों के साथ आंदोलन के केंद्र में 17 मई, 2021 का सिलगेर का घटनाक्रम है, जिसमें तीन आदिवासियों की सीआरपीएफ (सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स) कैंप की तरफ से हुई गोलीबारी में मौत हो गई थी। सरकार की तरफ से छह महीने में जांच रिपोर्ट देने के लिए दंडाधिकारी के नेतृत्व में दल गठित किया गया है, जबकि आदिवासी समाज के प्रतिनिधि जल्द से जल्द न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं, ताकि पीड़ित परिवारों को समय से मुआवजा सुनिश्चित हो सके।
निश्चित तौर पर बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर का घटनाक्रम दुखद था। पूरा प्रकरण बताता है कि आम आदिवासी किस तरह से दोनों तरफ से परेशानी में फंस रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था अभी भी उन्हें नक्सलियों से सुरक्षित रख पाने में कामयाब नहीं है और गांव के आसपास सीआरपीएफ कैंप स्थापना का अर्थ है कि उनकी दिनचर्या में दूसरे प्रदेश के निवासी फोर्स के जवानों की उपस्थिति और हस्तक्षेप।
इसमें दो राय नहीं कि जवानों की तैनाती से क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया में तेजी आई है और आदिवासियों को नक्सलियों से सुरक्षा मिल रही है, परंतु अनावश्यक रूप से किसी निर्दोष आदिवासी की जांच भी पूरे क्षेत्र को संवेदित कर देती है।
इस समस्या का समाधान फोर्स में अधिक से अधिक स्थानीय युवकों की नियुक्ति से ही संभव है। सरकार इस पर गंभीरता से काम भी कर रही है। वर्तमान समय में मुख्य मुद्दा सुकमा जिले के सिलगेर मामले में स्वजनों को मुआवजा व शासकीय नौकरी देने से जुड़ा है। मामले को शांत करने के लिए सरकार को इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान करने का प्रयास करना चाहिए।
अन्य मांगों में बस्तर से नक्सल समस्या की समाप्ति की मांग भी है।पदोन्नाति में आरक्षण, शासकीय नौकरी में आरक्षण रोस्टर, तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की भर्ती में आरक्षण, खनिज उत्खनन के लिए जमीन मालिक को शेयर होल्डर बनाने की जरूरत है। इन सबके लिए सरकार व्यवस्थित तरीके संवाद करे। आदिवासियों की समस्या आदिवासियों से अधिक बेहतर कोई नहीं बता सकता और उनके सहयोग से ही सही समाधान निकलेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री बघेल प्रदेश की शांति व्यवस्था और प्रगति के लिए अपने आश्वासन के अनुरूप इस दिशा में आवश्यक पहल करेंगे