छत्तीसगढ़

राजधानी में डर के आगे जीत का संदेश देकर शिक्षक ने लौटाई स्कूलों में रौनक

रायपुर। प्राचीन काल से गुरु हमारे पथ प्रदर्शक रहे हैं। अंधेरे में उजियारा लाने का काम वह सालों से कर रहे हैं। ऐसे गुरुजनों को हम सभी सलाम करते हैं। शिक्षक दिवस पर यह कहानी भी कुछ ऐसे ही एक शिक्षक की है जिन्होंने साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है। बस्तर के बीजापुर जिले के चेरपाल संकुल विकासखंड के स्रोत समन्वयक राजेश सिंह ने पदमूर गांव वालों को समझाया कि यहां बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल खोला जाए। अब डरने की जरूरत नहीं है और शिक्षक उनके साथ हैं।

शिक्षक राजेश सिंह की पहल और प्रेरणा से 15 साल बाद यहां आसपास के गांवों में पांच स्कूल खुल गए हैं और बच्चे पढ़ने पहुंचने लगे हैं। ऐसे में सालों से अंधेरे की गुमनामी में पड़े स्कूलों में रौनक आ गई। एक बार फिर यहां नौनिहालों की चहल-पहल से शिक्षा की ज्योति जलने लगी है। बता दें कि सलवा जुड़ूम के कारण वर्ष 2005 के बाद इलाके के 60 स्कूल बंद हो गए थे। पहले पदमूर की स्कूल को शुरू किया फिर पदेरा में तीन स्कूल और खोले गए, जबकि ग्रामीण डर के कारण स्कूल नहीं खोलना चाहते थे।

पढ़ने-पढ़ाने की ललक के बीच था खौफ

शिक्षक राजेश बताते हैं कि साल 2005 में सलवा जुड़ूम अभियान शुरू हुआ था। इसके कारण नक्सल प्रभावित इलाकों में अधिकतर शैक्षिक संस्थान बंद हो गए थे। उनमें से एक संकुल चेरपाल का गांव पदमुर भी था। गांव वालों के भीतर अपने बच्चों को पढ़ाने की ललक थी, लेकिन एक खौफ भी था, जिसके कारण वह अपने परिवार को खतरे में नहीं डालना चाहते हैं।

ऐसे हालात में गांव वालों के भीतर निडरता और विश्वास का भाव लाने के लिए इलाके के विकासखंड शिक्षा अधिकारी की मदद से गांव वालों से निरंतर संपर्क रखा गया। तीन साल तक समझाने के बाद आखिरकार गांव वाले राजी हो गए और यहां फिर पहले के जैसे ही स्कूलों में नौनिहालों की चहल-पहल शुरू हो गई। यहां स्थानीय युवक को ही ज्ञानदूत के रूप में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया।

पदमुर गांव में स्कूल खुलने के बाद ग्राम पंचायत पड़ेदा और पेड़ाकोरमा में प्राथमिक शाला नयापारा, प्राथमिक शाला हिरोलीपारा और प्राथमिक शाला काकेकोरमा के बच्चे भी स्कूल पहुंचकर ककहरा पढ़ना शुरू कर दिए हैं।

शिक्षक राजेश सिंह ने बताया कि इस साल चेरपाल से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित गांव पेद्दाजोजेर में 170 बच्चों के साथ 13 अगस्त को स्कूल की शुरुआत हुई।

इसी के साथ यहां प्राथमिक शाला कमकानार को भी प्रारंभ किया गया। अकेले राजेश सिंह की पहल से कई स्कूल खुल चुके हैं। हालांकि अभी भी 25 से अधिक स्कूल बंद हैं और यहां ग्रामीणों को समझाने में शिक्षक लगे हुए हैं।

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