छत्तीसगढ़

प्रदेश में मायके पहुंचीं तिजहारिनें, कड़ू भात खाकर रखा निर्जला व्रत

रायपुर। अखंड सुहाग की कामना करने का पर्व तीजा गुरुवार को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि माता-पिता अपनी विवाहित बेटियों को मायके आमंत्रित करके उनकी आवभगत करते हैं। विवाहित बेटियां अपने मायके में ही तीजा पर्व पर निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। तीजा पर्व मनाने के लिए मंगलवार से ही बेटियों को मायके लाने-ले जाने का सिलसिला शुरू हो गया। बुधवार की रात शिव-पार्वती की पूजा करके सुहागिनें कड़ू भात यानी करेला और चावल को पकाकर खाया और करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू किया। इसके बाद शुक्रवार को व्रत का पारणा करेंगी।

महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला एवं पं.चंद्रभूषण शुक्ला के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पार्वती ने सालों तक तपस्या की थी। भाद्रपद माह की तृतीया तिथि पर शिव प्रकट हुए थे। हरतालिका पूजन प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना ही शास्त्रसम्मत है। प्रदोषकाल के लिए सूर्यास्त के बाद 96 मिनट जोड़ दें। लगभग एक घंटे 36 मिनट का समय प्रदोष काल माना जाता है।

हरतालिका पूजन प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने वाले समय पर किया जाता है। शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर थाल में केले के पत्ते पर प्रतिमाओं को रखें। कलश पर नारियल रखकर लाल कलावा बांधे। कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर गणेश, गौरी-शिव की पूजा करें। हरतालिका तीज की कथा सुनें।

रात्रि जागरण करके प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करें। अंतिम प्रहर में पूजा के बाद माता गौरी को चढ़ाए गए सिंदूर को लें। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाकर उसी प्रसाद का सेवन कर व्रत का पारणा करें। पूजन सामग्री को नदी में विसर्जित करें। माता गौरी को अर्पित सुहाग सामग्री, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहंदी का दान करें।

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