राजधानी में कई स्ट्रीट वैंडर्स के सामने रोजी-रोटी का संकट, नहीं मिला कर्ज
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर कोराना संक्रमण और लाकडाउन के चलते रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं (स्ट्रीट वेंडरों) के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। स्ट्रीट वेंडरों को दोबारा मुख्य धारा में लाने के लिए प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के अंतर्गत दस हजार रुपये निगम की तरफ से कर्ज के रूप में बैंकों से उपलब्ध कराया जा रहा था। कर्ज लेने के लिए निगम में 19 हजार 384 वेंडरों ने आवेदन जमा किया था, लेकिन सिर्फ 8 हजार 636 लोगों को ही कर्ज निगम दिला पाया है। बाकी के लोग कर्ज के लिए निगम के दरवाजे खटखटा रहे हैं। जिन्हें कर्ज मिल चुका है, उन्हें निगम अब डिजिटल लेन-देन का प्रशिक्षण दे रहा है, ताकि वे साइबर ठगी के शिकार न हों।
रायपुर नगर निगम से मिली जानकारी के अनुसार रायपुर नगर निगम में कुल 19 हजार 384 वेंडरों ने आवेदन आए हैं, जिसमें आठ हजार 636 लोगों के आवेदन स्वीकृत किए गए हैं। बाकी के 10 हजार 748 मामले पेंडिंग हैं। निगम के अधिकारी का कहना है कि बैंक के पास आवेदन दिया जा रहा है, लेकिन बैंक द्वारा लोन पास नहीं किया जा रहा है। जिस कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है।
इस स्कीम का उद्देश्य सड़क के किनारे छोटी-मोटी दुकान लगाने वालों को प्राइवेट मनी लेंडर्स से बचाना है। साथ ही इन्हें सस्ता कर्ज मुहैया कराना है, जिससे जरूरत पर उन्हें लाभ हो सके।
ज्ञात हो कि रायपुर के विभिन्ना वार्डों के लगभग आठ हजार स्ट्रीट वेंडर्स को डिजिटल लेन-देन के संबंध में प्रशिक्षण राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन द्वारा भारत पे के सहयोग से दिया जा रहा है। स्ट्रीट वेंडर्स को जानकारी दी जा रही है कि डिजिटल भुगतान के माध्यम से डिजिटल लेन-देन कैसे स्वीकार करें, उन्हें यूपीआइ, क्यूआरकोड के संबंध में जानकारी दी जा रही है।
भारत पे एग्रीग्रेटर्स ने पटरी रेहड़ी वाले सस्ट्रीट वेंडर्स को भी डिजिटल लेन-देन से जुड़कर उसका लाभ उठाने के लिए प्रशिक्षण से जुड़ने की स्वीकृति दे दी है। स्ट्रीट वेंडर्स ठेलों और पटरी रेहड़ी वालों को प्रशिक्षण में डिजिटल लेन-देन के प्रशिक्षण में डिजिटल ट्रांजेक्शन कैसे करना है, डिजिटल एप का उपयोग कैसे करें, उसे अपडेट कैसे करें, लागत और बचत कैसे होगी, उसकी सुरक्षा कैसे करें, ताकि साइबर ठगी से बच सकें। डिजिटल एप्प के माध्यम से लोन लेने की प्रक्रिया की स्ट्रीट वेंडर्स को ट्रेनिंग दी जा रही है। इस हेतु उन्हें क्यूआरए कोड भी दिया जा रहा है