राजधानी में सरकार की रंग लाई मेहनत , गोबर से बनी चप्पल की बाजारों में धूम, कई बीमारियों से मिलती है
रायपुर। छत्तीसगढ़ में गोबर से बनी वस्तुओं का यूं तो देशभर में काफी मांग है और अब छत्तीसगढ़ के उत्पादों की डिमांड विदेशों में भी बढ़ रही है। इसी बीच वर्तमान में देशभर में चर्चा का विषय बना गोबर का चप्पल लोगों को खूब भा रहा है। पूर्ण प्राकृतिक तरीके से बनी गोबर की ये चप्पलें जहां पहनने में काफी आरामदायक है तो वहीं इसे पहनने से कई तरह की बीमारियां भी खत्म हो रही है।
गोबर से चप्पल बनाने वाले युवा उद्यमी, पशु पालक रितेश अग्रवाल से जब इस संबंध में चर्चा की तो कई रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई। TCP 24 से चर्चा करते हुए राजधानी रायपुर के गोकुल नगर स्थित गोठान के पशुपालक रितेश अग्रवाल ने कहा के वे प्लास्टिक उपयोग का विरोध करते रहे हैं। उनका कहना है की पूरी दुनिया में प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है. इससे पर्यावरण के साथ गौवंश को भारी नुकसान हो रहा है. जिसको देखते हुए गोबर की चप्पल का निर्माण किया जा रहा है.
रितेश अग्रवाल ने बताया की राज्य सरकार ने गौठान बनाकर सड़को पर लावारिस घूमने वाले गौवंश को संरक्षित किया है. गाय सड़को पर पड़े प्लास्टिक खाकर बीमार हो जाती थी. उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत गौवंश प्लास्टिक खाने के कारण बीमार होते हैं. 80 प्रतिशत गौवंश की प्लास्टिक के कारण मौत हो जाती है. इसीलिए गाय को प्लास्टिक से दूर रखना बेहद जरूरी है.
उन्होंने कहा गौठान तो बन गए हैं लेकिन हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि इस पहल को कैसे आय का स्रोत और रोजगार सृजन किया जाए. इसके लिए हमने गोबर से चप्पल, दीए, ईंट और भगवान की प्रतिमा बनाने की शुरुआत की है. बीती दिवाली में 1 लाख 60 हजार दीए की बिक्री हुई हैं. अब तक गोबर से बनी चप्पल के एक हजार ऑर्डर मिल चुके हैं.
बाजार में 400 रूपए है चप्पल की कीमत
रितेश अग्रवाल ने बताया कि दर्जन भर चप्पल बिक चुकी हैं. चप्पलों को बीपी, शुगर के मरीज और गौ भक्तों के लिए सैंपल के तौर पर बनाया गया था. इस चप्पल से स्वास्थ्य के लाभ को जानने के लिए हमने लोगों को हमने रोजाना चप्पल पहनने के टाइमिंग नोट करने के लिए बोला है. साथ ही इस चप्पल पहनने के बाद बीपी और शुगर नोट करने के लिए बोला है. इसका असर भी दिखाई दे रहा है. रितेश ने बताया कि एक जोड़ी चप्पल की कीमत 400 रुपये है. ये है गोबर से चपपल बनाने की प्रक्रिया गोबर से चप्पल बनाने विधि सरल है. पुरानी पद्धति से हम गोबर की चप्पल बना रहे हैं.
गोहार गम, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, चूना और गोबर पाउडर को मिक्स कर चप्पल बनाई जाती हैं. चप्पल बनाने और गौशाला में गौवंश के देखरेख के लिए 15 लोगों को रोजगार मिल रहा है. यहां महिलाएं 1 किलो गोबर से 10 चप्पलें बनाती हैं. मूल रूप से ये चप्पल घर, ऑफिस कार्य में पहन सकते हैं. 3-4 घंटे बारिश में भीगने पर भी ये खराब नहीं होती है. धूप में रखने के बाद चप्पल फिर से पहनने लायक हो जाती है.