इस जिले के कमिश्नर की पहल पर सपनों को मिली उड़ान: सेंट्रल जेल के बच्चों को मिला एजुकेशन का गिफ्ट…स्वामी आत्मानंद और प्राइवेट स्कूलों में मिला एडमिशन
बिलासपुर। केंद्रीय जेल के कैदियों के 8 बच्चों को बेहतर शिक्षा हासिल करने का मौका मिल सकेगा और उनके सपनों को नई उड़ान मिलेगी। दरअसल, नए साल में कमिश्नर ने इन बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए सौगात दी है। इन बच्चों को अब स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल के साथ ही निजी स्कूलों में भर्ती कराया गया है।
केंद्रीय जेल में सजा काट रहे कई कैदी ऐसे हैं, जिनके बच्चे भी जेल परिसर में रहते हैं। पति-पत्नी जेल में होने के कारण उनके बच्चों को भी जेल में जीवन गुजारना पड़ रहा है। ऐसे बच्चों के लिए जेल परिसर में मुक्ताकाश की शुरूआत की गई थी, जहां कैदियों के बच्चों को रखा जाता है।
जेल मैनुअल के अनुसार 6 साल से कम उम्र के ही बच्चों को उनकी मां के साथ रहने की छूट दी जाती है। 6 साल से अधिक आयु के बच्चों को मुक्ताकाश में रखा जाता है। उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था भी की जाती है। अभी तक इन बच्चों को पास के गवर्नमेंट स्कूल में दाखिला दिया जाता था। मगर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग ने इन बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल के साथ ही निजी स्कूलों में दाखिला दिलाया है।
8 बच्चों को दिलाया प्रवेश
कमिश्नर डॉ. अलंग की पहल पर छत्तीसगढ़ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बिलासपुर में पढ़ने वाले एक 13 वर्षीय बालक को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल में प्रवेश दिलाया गया है। इसी तरह शिवाजी राव प्राथमिक शाला इमलीपारा बिलासपुर में कक्षा 5वीं के 11 वर्षीय बालक, कक्षा तीसरी के 7 वर्षीय बालक, कक्षा पहली के 6 वर्ष के बालक, कक्षा चौथी की 8 वर्षीय बालिका व कक्षा पांचवीं की 9 वर्षीय बालिका को स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल में प्रवेश दिलाया गया है। मुक्ताकाश में ही रह रही 13 व 14 वर्षीय दो बालिकाएं जो देवकीनंदन उच्चतर माध्यमिक शाला में पढ़ रही थीं, वे भी अब बर्जेश हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ेंगीं।
कलेक्टर रहते भी किया था पहल
कमिश्नर डॉ. संजय अलंग बिलासपुर में कलेक्टर थे, तब भी उन्होंने जेल परिसर में कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने की पहल शुरू की थी। तब उन्होंने एक बच्ची को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए एक बड़े निजी स्कूल में भर्ती कराया था। वे हर वर्ष प्रयास करते हैं कि जेल के मुक्ताकाश में रहने वाले और जेल में बंद अपने पालक के साथ रहने वाले बच्चों को समाज की मुख्य धारा में लाया जा सके। इसी कड़ी में उनके प्रयास से आठ बच्चों को इस वर्ष अच्छे स्कूलों में पढ़ने का अवसर मिला है।