प्रदेश का प्राचीन मंदिर खजुराहो भोरमदेव,जानिए इस मंदिर की पूरी प्राचीन कहानी
छत्तीसगढ़। के बड़े पर्यटन स्थल भोरमदेव जो की भगवान शिव का ही एक नाम है। मैकल पर्वत समूह से घिरा यह स्थल देखने में काफी सुंदर है। मंदिर के सामने एक तालाब है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है। इसके कारण लोग इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहते हैं।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही मंडप पर एक दाढ़ी मूंछ वाले योगी की मूर्ति स्थापित है। योगी की बैठी हुइ मूर्ति पर एक लेख लिखा है। इसमें इस मूर्ति के निर्माण का समय कल्चुरी संवत 840 दिया है। इससे यह पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण छठवे फणी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ था। कल्चुरी संवत 840 का अर्थ 10वीं शताब्दी के बीच का समय होता है। यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है।
इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। इस मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर में 3 प्रवेशद्वार है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे आप मंदिर के मंडप में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंडप की लम्बाई करीबन 60 फुट है और चैड़ाई 40 फुट।
मंडप में लक्ष्मी विष्णुु एवं गरूड़ की मूर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरूष की मूर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मूर्तियां रखी है तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मूर्ति है साथ ही नृत्य करते हुए गणेश की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरूष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री पुरूष की मूर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है।
मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर विष्णु शिव चामुंडा तथा गणेश आदि की मूर्तियां लगी है। इसके साथ ही लक्ष्मी विष्णु एवं वामन अवतार की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारिश्वर की मूर्ति भी यहां लगी हुई है। मंडप के बीच में 4 खंबे है तथा किनारे की ओर 12 खम्बे है, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है।
सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक है। प्रत्येक खंबे पर किचन बना हुआ है,जो कि छत का भार संभाले हुए हैं। यह मंदिर बहुत ही सुंदर तथा दर्शनीय है। पहाड़ियों से घिरे इस मंदिर को देखते ही जैसे लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। कोरोना महामारी के कारण दर्शकों के लिए इस मंदिर को बंद कर दिया गया था लेकिन अब इस मंदिर के द्वार सभी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए खुल चुके