छत्तीसगढ़

धमतरी जिले के इस गांव में महिलाओं को सिंदूर लगाने की है मनाही, चारपाई पर भी सोना है मना

धमतरी। जिले में एक ऐसा गांव भी है जहां महिलाओं को सिंदूर लगाने की मनाही है और न ही वे अन्य कोई श्रृंगार कर सकती है. इतना ही नहीं उनका कुर्सी पर बैठना, खाट पर सोना, धान काटना और पेड़ पर चढ़ना भी वर्जित है. बेहद पुराने इन अजीबो-गरीब नियमों के पीछे कारण ग्रामीणों का अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ा होना है. ग्रामीणों का तर्क है कि ऐसा करने से देवी नाराज होती है और गांव में विपदा आती है. यह गांव है संदबाहरा. यहां की महिलायें बरसों से इन अजीब नियमों से जूझ रही हैं.

श्रृंगार के बिना स्त्री की कल्पना नहीं की जा सकती है. सिंदूर लगाना महिला के श्रृंगार का अहम हिस्सा है. लेकिन संदबाहरा में महिलाओं के लिये सिंदूर लगाना मना है. इसके साथ ही महिलाओं पर कई अन्य तरह के प्रतिबंध भी लगाये गये हैं. यहां की महिलायें कुर्सी पर नहीं बैठ सकती और न ही खाट पर सो नही सकती हैं. खेत में धान काटने के लिये भी नहीं जा सकती हैं.

संदबाहरा गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि अगर इन प्रतिबंधों को किसी ने तोड़ा तो देवी नाराज हो जाती है और गांव में विपदा आ जाती है. गांव के बुजुर्गों की मानें तो काफी पहले गांव के मुखिया को देवी ने सपने में आकर ऐसा आदेश दिया था. तभी से ये गांव लकीर का फकीर बना हुआ है. कुछ विवाहित महिलाओं ने बताया कि उनका मन भी सजने संवरने का होता है. वो भी कुर्सी पर बैठना और खाट पर सोना चाहती है. लेकिन अनिष्ट की आशंका और अनहोनी से बचने के लिए मन मार कर रहना पड़ता है.

दरअसल संदबाहरा गांव धमतरी के नगरी ब्लॉक में स्थित है. यह गांव जंगलों से घिरा हुआ है और पूरी तरह नक्सल प्रभावित है. इसके कारण यह गांव विकास की दौड़ में काफी पीछे रह चुका है. नक्सलियों का प्रभाव होने के कारण बाहरी लोगों से यहां के लोग ठीक से बोलते बतलाते भी नहीं हैं. लेकिन काफी कोशिशों के बाद लोगों ने अपने गांव की प्रथाओं के बारे में खुद बताया. ऐसा नहीं है कि महिलाएं इन अजीब नियमों को खुशी से मान लेती है. बड़ी संख्या में महिलाएं इन नियमों को नापसंद करती है लेकिन खुलकर विरोध नही कर पाती है.

फिर भी गांव में एक ऐसी महिला मिल गई जिसने इन अजीब नियमों के खिलाफ आवाज उठाई थी. इस महिला रेवती मरकाम ने बताया कि उसने लोगों को समझाने की काफी कोशिशें की थी लेकिन वह सफल नही हो सकी. लोगों का दबाव इतना ज्यादा है कि महिलायें चाहकर भी इन विचित्र मान्यताओं को अभी तक तोड़ नहीं पाई हैं. हालांकि गांव के लोग अब शिक्षित भी हो रहे हैं और आधुनिक दुनिया से भी जुड़ने लगे हैं. लेकिन इस तरह के अंधविश्वास से मुक्ति के लिए व्यापक स्तर पर जागरुकता के प्रयासों की जरूरत है.

 

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