छत्तीसगढ़

रायपुर के गढ़कलेवा में बोरे बासी के साथ गूंजी छत्तीसगढ़ी लोक गीत ‘‘बटकी म बासी अउ चुटकी म नून…’’

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आव्हान पर 01 मई मजदूर दिवस को बोरे बासी दिवस के रूप मनाने का सिलसिला शुरू हो गया है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के आव्हान पर ही संस्कृति विभाग द्वारा गढ़कलेवा में आज से बोरे बासी थाली का शुभारंभ किया गया है। लोग चाव के साथ मुख्यमंत्री के आव्हान पर बोरे बासी खाकर श्रम को सम्मान देने के इस अभियान में भागीदारी बने। राज्य प्रशासनिक अधिकारी भी बोरे बासी खाकर तृप्त हुए और ठंडकता महसूस की।

 

राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डिप्टी कलेक्टर लिंगराज सिदार ने बासी खाकर प्रतिक्रिया में बताया वे बचपन में अक्सर बासी खाते थे। भले ही अब बासी खाने का अवसर कम मिलता हो, लेकिन जैसे ही बासी खाने का मौका मिलता है, तो वह बासी जरूर खाता है। आज श्री सिदार अपने साथियों के साथ गढ़कलेवा में विशेष रूप से बोरे बासी खाने आए हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारी हेमंत सिदार, निखिलेश सिदार सहित अन्य लोगों ने भी उत्साह के साथ बोरे बासी का लुप्त उठाया।

संस्कृति विभाग परिसर में चला छत्तीसगढ़ी बासी जादू :
संस्कृति विभाग परिसर स्थित गढ़कलेवा में आज दोपहर छत्तीसगढ़ी फी़चर फिल्म ‘‘भूलन द मेज’’ के निर्माता-निर्देशक और कलाकारों ने बोरे बासी को सम्मान के साथ खाया। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आव्हान पर संस्कृति विभाग द्वारा गढ़कलेवा में मजदूर दिवस के अवसर पर 01 मई से बोरे बासी थाली का शुभारंभ किया गया है। गढ़कलेवा में आम जनों सहित कलाकारों अधिकारियों-कर्मचारियों और महिलाओं, बुजुर्गो सहित युवाओं ने चाव से बोरे बासी खाया।

भूलन द मेज छत्तीसगढ़ फ़ीचर फिल्म के कलाकार पुष्पेन्द्र सिंह प्रतिक्रिया में बताया कि बासी सिर्फ हमारा आहार ही नहीं बल्कि संस्कृति है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को सहजने के साथ ही श्रमवीरों के सम्मान के लिए मजदूर दिवस को बोरे बासी दिवस के रूप में मनाने का आव्हान प्रशंसनीय है। इससे न केवल वेस्ट हो रहे भोजन का सद्उपयोग होगा। बिना खर्च किए घर पर ही बासी के रूप पौष्टिक भोजन मिलेगा, वहीं गर्मी में ठंडकता भी मिलेगी।

मनोज वर्मा ने कहा-
निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा ने कहा कि बासी स्वास्थ्य और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से काफी महत्व रखता है। बासी को किसानों, श्रमवीरों सहित सभी वर्ग के लोग अपने-अपने तरीके से खाते हैं। बासी पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के तीज-त्यौहार,वेश-भूषा और खान-पान सहित कला, संस्कृति, परंपरा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कार्य कर रहे हैं। बोरे बासी भी विशेषकर किसानों, श्रमिकों के लिए खान-पान का एक अहम हिस्सा है। राज्य की संस्कृति को बोरे बासी के माध्यम से सहजने का प्रयास सराहनीय कदम है।

 

कलाकार उपासना वैष्णव ने कहा कि जब भी अवसर मिलता है मैं बासी जरूर खाती हूँ। वैसे तो मैं घर पर रहती हूं तो ज्यादातर बासी खाती हूं। बोरे बासी खाना हमारी संस्कृति में रचा-बसा है। हालांकि आधुनिकता के प्रभाव में कुछ प्राचीन संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही हैं।

 

ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बोरे बासी खाने का आव्हान कर छत्तीसगढ़ी संस्कृति को सहजने के साथ-साथ श्रमवीरों का भी सम्मान किया। गायक और लोक कलाकार संजय महानंद ने ‘‘बटकी म बासी अउ चुटकी म नून’’ लोकगीत के माध्यम से बासी का महत्ता का बखान किया। इस मौके पर भूलन द मेज के कलाकार योगेश अग्रवाल, सुरेश गोण्डाले, विक्रम सिंह, अनुराधा दुबे, निशांत उपाध्याय, विनय शुक्ला, समीर गांगुली, सुदीप त्यागी, शिवानी सेन, नूतन सिन्हा, अंथनी गाइडिया ने चाव के साथ बोरे बासी खाया।

 

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