दुर्ग : कोरोना काल के बाद इस बार यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध थनौद गांव पहुंचे। उन्होंने यहां बनाई जा रही गणेश प्रतिमाओं को देखा और मूर्तिकारों से बात की। उन्होंने गृहमंत्री को बताया कि गांव तक का पहुंच मार्ग खराब होने से मूर्ति लेने आने वालों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।
इस पर गृहमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को तत्काल सड़क ठीक कराने के निर्देश दिए। कहा कि पहले सड़क को तुरंत डस्ट डालकर ठीक किया जाए, इसके बाद उसके निर्माण की प्रक्रिया को पूरा किया जाए।
दो दिन बाद 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। इससे दुर्ग के थनौद में निर्मित गणेश प्रतिमा की डिमांड काफी बढ़ गई है। इसे देखते हुए गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू रविवार शाम खुद थनौद गांव पहुंचे और मूर्तिकारों से मिले। इस दौरान उन्होंने मूर्तिकार प्रेम चक्रधारी, माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष बालम चक्रधारी सहित अन्य मूर्तिकारों से बात की।
गृहमंत्री ने उनसे मूर्तिकला के बारे में जाना। उनसे पूछा कि उनकी मूर्तियों में क्या खास बात होती है कि वह छत्तीसगढ़ सहित दूसरे प्रदेशों में फेमस है। इस बार उनकी मूर्तियों की डिमांड क्या। इस पर मूर्तिकारों ने बताया कि इस बार गणेश प्रतिमाओं की काफी अधिक डिमांड है। इस बार जो मूर्तियां बनाई जा रही हैं वो शासन के निर्देशानुसार बनाई जा रही हैं। सभी मूर्तियां मिट्टी की बनाई जा रही हैं।
इस मौके पर उनके साथ जिला पंचायत अध्यक्ष शालनी रिवेन्द्र यादव, जनपद अध्यक्ष देवेंद्र देशमुख, माटी कला बोर्ड अध्यक्ष बालम चक्रधारी, सहकारिता प्रकोष्ट अध्यक्ष रिवेन्द्र यादव, ब्लॉक अध्यक्ष नंद कुमार सेन आदि मौजूद रहे।
मिट्टी की मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है थनौद गांव
शिवनाथ नदी के तट पर बसा थनौद गांव मूर्तिकला के लिए पूरे छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों में भी अलग पहचान बना चुका है। यहां की बनी मूर्तियों की डिमांड काफी दूर-दूर से आती है। यहां पूरे गांव के लोग मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं। मूर्तिकारों का कहना है कि मूर्तिकला का हुनर उनके खून में है। वह ये काम करके पुश्तैनी कला को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसी कार्य से पूरे गांव का जीवको पार्जन होता है।
800 से अधिक लोग मिलकर बनाते हैं मूर्ति
माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष बालम चक्रधारी ने बताया कि मूर्ति बनाना वे अपने पुरखों से सीखे हुए हैं। बचपन से ही मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया था। वे अपने 5 भाइयों के साथ मिलकर मूर्तियां बनाने का कार्य करते हैं। इसके साथ ही वो नव युवकों और बच्चों को भी मूर्तियां बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। सीखने वालों में सिर्फ कुम्हार जाति के लोग ही नहीं हर वर्ग के लोग शामिल हैं। इस प्रयास के चलते अब तक लगभग 800 से अधिक लोग मूर्तिकला से जुड़ चुके हैं।
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