छत्तीसगढ़

बस्तर की खास परंपरा… नवरात्र में किन्नर निकालते है श्रृंगार यात्रा, दंतेश्वरी मंदिर में चढ़ाते हैं पहली चुनरी और श्रृंगार

दंतेवाड़ा। पूरे देश समेत बस्तर में भी शारदीय नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, सोमवार सुबह से ही बस्तर के सभी देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है, वही बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी मंदिर में सुबह से ही लोग दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। लेकिन नवरात्रि के पहले दिन देवी की पहली पूजा किन्नर समाज के द्वारा किए जाने की परंपरा बस्तर में लंबे समय से चले आ रही है। जिसके लिये रविवार और सोमवार के आधी रात किन्नर समाज के द्वारा शहर में श्रृंगार यात्रा निकाली गई।

इस परंपरा के तहत देर रात बग्गी में सवार साज श्रृंगार किये किन्नरो के द्वारा आधी रात में श्रृंगार यात्रा निकालकर देवी भजन के धुन पर दंतेश्वरी मंदिर पहुंचते है और सुबह के करीब 4 बजे जैसे ही मां दंतेश्वरी का दरबार खुलता है, पहला दर्शन किन्नरों के द्वारा किया जाता है, जिसके बाद माता को पहली चुनरी और श्रृंगार किन्नरों के द्वारा चढ़ाई जाती है।

दरअसल हर साल नवरात्रि के शुरू होने से पहले देर रात किन्नर समाज ही मां दंतेश्वरी को पहली चुनरी चढ़ाते हैं, इस दौरान किन्नर समाज के सभी लोग श्रृंगार सामान लेकर दंतेश्वरी के दरबार पहुंचते हैं और नाच गाने के साथ मां की भक्ति में सराबोर हो जाते हैं। किन्नर समाज की अध्यक्ष रिया परिहार ने बताया कि हर साल किन्नरों के श्रृंगार यात्रा में जगदलपुर के अलावा पड़ोसी राज्य उड़ीसा से भी किन्नर भव्य यात्रा में शामिल होने के लिए बस्तर पहुंचते हैं और नवरात्रि के पहले दिन हर साल किन्नरों द्वारा श्रृंगार यात्रा निकाली जाती है।

इसमें बस्तर वासियों का भी समर्थन मिलता है। माता रानी के भजन के धुन पर सभी किन्नर थिरकते हुए माता को चुनरी और श्रृंगार का सामान चढ़ाने के लिए मंदिर पहुंचते हैं। इस दौरान सभी किन्नर सात श्रृंगार किए होते हैं। अध्यक्ष रिया का कहना है कि मां दंतेश्वरी के प्रति किन्नरों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। यही वजह है कि हर साल नवरात्रि के पहले दिन चुनरी और श्रृंगार का सम्मान किन्नरों के द्वारा ही माता को चढ़ाया जाता है। किन्नरों ने कहा कि वह भी समाज का एक प्रमुख अंग है, इस पूजा के पीछे उनका उद्देश्य होता है कि सभी व्यापारियों व बस्तरवासियों पर किसी तरह की कोई समस्या ना आए और किसी की गोद खाली ना रहे, इसलिए मां दंतेश्वरी से वे प्रार्थना करने पहुंचते हैं।

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