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आज है 553वां प्रकाश पर्व, जानिए इस दिन का महत्व, पढ़ें 10 काम की बात

 

 

 

सिख धर्म के संस्थापक और दस सिख गुरुओं में से पहले गुरु नानक देव जी की आज 553 वीं जयंती मनाई जा रही है l इस दिन को गुरुपुरब, प्रकाश पर्व और गुरु नानक के प्रकाश उत्सव के रूप में भी जाना जाता है l यह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर, चंद्र ग्रहण (जिसे ब्लड मून भी कहा जाता है) लगेगा। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा तो एक दिन पहले मनाई गई लेकिन प्रकाश पर्व आज ही मनाया जा रहा है l

धार्मिक सूत्रों के अनुसार, गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में तलवंडी ननकाना साहिब में हुआ था। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी और इस दुनिया में मानवता और ज्ञान का प्रकाश फैलाया।

गुरु नानक देव जी का मानना ​​था कि सच्ची प्रार्थना के माध्यम से कोई सर्वशक्तिमान से जुड़ सकता है। सिख धर्म के पवित्र धार्मिक ग्रंथ – गुरु ग्रंथ साहिब में उनकी सभी शिक्षाओं को एक साथ संकलित किया गया है। गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम, संप्रभु और शाश्वत गुरु माना जाता है।

इस दिन गुरुद्वारों में अखंड पाठ कहे जाने वाले गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे तक लगातार पाठ किया जाता है। इसके अतिरिक्त, गुरु नानक के जन्मदिन से एक दिन पहले नागरकीर्तन नामक एक जुलूस का आयोजन किया जाता है, जिसका नेतृत्व पंज प्यारे नामक पांच लोग करते हैं, जो सिख त्रिकोणीय ध्वज, निशान साहिब रखते हैं।

जुलूस के दौरान, गुरु ग्रंथ साहिब को एक पालकी में रखा जाता है, और लोग समूहों में भजन गाते हैं, पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र बजाते हैं, और अपने मार्शल आर्ट गतका का प्रदर्शन करते हैं।

गुरुनानक देव की शिक्षाएं भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत−प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं जो इस प्रकार हैं−

1. ईश्वर एक है।

2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।

3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।

4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।

5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।

6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।

7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए।

8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।

10. भोजन शरीर को जि़ंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।

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