हाईकोर्ट ने महिला को 32 हफ्ते के गर्भ का कहा कि यह अधिकार महिलाअबॉर्शन करवाने की अनुमति
महाराष्ट्र : बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला को 32 हफ्ते के गर्भ का अबॉर्शन करवाने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार महिला का है कि उसे अपनी गर्भावस्था को जारी रखना है या फिर इसे खत्म करना है। ये फैसला मेडिकल बोर्ड नहीं ले सकता है। हाईकोर्ट ने बताया कि याचिकाकर्ता गर्भावस्था के 33 सप्ताह तक अबॉर्शन करवा सकती है। गर्भ में रहा बच्चा अगर गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जैसे छोटा सिर, दिमाग के जुड़ी दिक्कतें हैं तो महिला अपनी मर्जी से इसका फैसला कर सकती है।
जस्टिस गौतम पटेल और एसजी डिगे की बेंच ने कहा, याचिकाकर्ता के अधिकारों को कानून के दायरे में आने के बाद कैंसिल करना अदालत का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में मेडिकल बोर्ड के विचारों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। मेडिकल बोर्ड की तरफ से कहा गया था कि भले ही गर्भावस्था में गंभीर असामान्यताएं हैं, लेकिन तब भी महिला अबॉर्शन नहीं करवा सकती है।
बोर्ड ने पक्ष रखते हुए कहा कि ऐसे समय में गर्भावस्था लास्ट स्टेज पर होती है, जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला 20 जनवरी को दिया। एक मां और महिला के रूप में सभी याचिकाकर्ता के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इंसान को गर्भधारण करने में सक्षम होना चाहिए और आत्मनिर्णय लेना चाहिए।
अबॉर्शन के लिए की थी मांग
महिला ने 29 सप्ताह में सोनोग्राफी के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे के माइक्रोसेफली (असामान्य रूप से छोटा सिर और मस्तिष्क) और लिसेंसेफली (चिकना मस्तिष्क) सहित कई दिक्कतें पाई थीं। महिला ने इन दिक्कतों के कारण अस्पताल में अबॉर्शन के लिए कहा था, जिसपर मेडिकल बोर्ड ने देर से गर्भधारण की अवस्था का हवाला देते हुए अनुरोध को अस्वीकार कर लिया और कहा कि यह सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में ठीक किया जा सकता है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 30 दिसंबर को उसे ससून जनरल अस्पताल, पुणे में भर्ती कराया गया, जिसने विसंगतियों की पुष्टि की, जहां एक मेडिकल बोर्ड ने देर से चरण का हवाला देते हुए उसके एमटीपी अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद महिला ने कोर्ट में याचिका की। एक गंभीर भ्रूण असामान्यता को देखते हुए, गर्भावस्था की अवधि कोई मायने नहीं रखती। याचिकाकर्ता ने एक सूचित निर्णय लिया है। यह आसान नहीं है। लेकिन यह निर्णय उसका है, और उसे अकेले ही करना है। चुनने का अधिकार महिला का है। यह मेडिकल बोर्ड का अधिकार नहीं है। अदालत ने अपने आदेश में कहा।