
दुर्ग। छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायन विधा को विदेशों तक पहुंचाने वाली पद्मश्री पदम् विभूषण और पद्मभूषण से सम्मानित डॉ. तीजन बाई की आवाज पर हजारों तालियां बजती थी। लेकिन अब यह पांडवों की कथा कापालिक शैली में सुनाने वाली आवाज फीकी पड़ती जा रही है। अब शायद हमें उनकी आवाज फिर से सुनने को न मिले। क्योंकि अब तीजन बाई ने बात करना भी बंद कर दिया है। उनकी सेहत में सुधार होने की बजाए धीरे-धीरे बिगड़ रही है। ये देश की एक मात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है।
तीजन बाई के जीवन की कुछ खास बातें
डॉ. तीजन बाई पर रविशंकर विश्विद्यालय में शोध किये जा रहें। उन्हें डी लिट् और पीएचडी की कई उपाधियाँ प्रदान की गई है। बॉलीवुड उनके जीवन पर फ़िल्म बनाने के लिए 4 साल पहले अनुबंध कर चुका है, लेकिन 24 साल हो चुके छत्तीसगढ़ राज्य में पदम् सम्मानों से सम्मानित डॉ. तीजन बाई को अब तक राज्य सरकार से कोई पेंशन नहीं मिल पाया है। संस्कृति विभाग भी ऐसे कलाकारों के लिए कोई योजना नहीं बना पाया। जिनके कारण छत्तीसगढ़ को विदेशों में पहचान मिली है। करीब डेढ़ साल से तीजन बाई लकवा होने की वजह से बिस्तर पर ही है। उनके दो महीने पहले ब्लड प्रेशर बढ़ने की वजह से बंद हुई फीजियोथैरेपी दोबारा शुरू नहीं हो सकी है। तीजन बाई की बहन रम्भा की बहू वेणु देशमुख जो उनका देखभाल करती हैं वे बताती हैं कि अब उनके इलाज में होने वाले खर्च को लेकर परेशान है. पेंशन के नाम पर पद्मविभूषण डॉ. तीजन बाई को केंद्र सरकार से 4 हजार 3 सौ 66 रुपये मिलते हैं. इलाज में होने वाला खर्च तीजन बाई की जमा पूंजी से किया जा रहा है. इधर परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. वहीं पंडवानी की पुरोधा मानी जाने वाली डॉ. तीजन बाई के बीमार पड़ते ही उन सभी लोगों ने किनारा कर लिया जो कभी उनके बुलंदियों के दिनों में साथ हुआ करते थे।