कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलसचिव की प्रतिनियुक्ति पर हाईकोर्ट का नोटिस, मांगा दो हफ्ते में जवाब
रायपुर : कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलसचिव की कुर्सी पर लगभग चार वर्षों से जमे डॉ. आनंद शंकर बहादुर की प्रतिनियुक्ति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार 60 वर्ष की सेवा निवृत्ति होने पर भी अब तक उन्हें कार्यमुक्त क्यों नहीं किया गया है। मामला हाईकोर्ट में पहुंचने पर सारा खुलासा हो रहा है। विश्वविद्यालय के एक जागरूक सीनियर प्रोफ़ेसर एवं प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. शाहिद अली ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कुलसचिव डॉ आनंद शंकर बहादुर की प्रतिनियुक्ति को चुनौती दी है।
जिस पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा विभाग, विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। डॉ. अली ने अपनी याचिका में विश्वविद्यालय के नियमानुसार लगभग छह माह पहले 17 जुलाई 2022 को 60 साल की आयु होने पर डॉ. आनंद शंकर बहादुर सेवानिवृत्ति होने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय से कार्यमुक्त हो जाना था, किंतु उन्होंने विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्ति संबंधी नियम को दरकिनार करते हुए अनाधिकृत रूप से कुलसचिव के पद का लाभ और सुविधाएं ले रहे हैं।
बताया जाता है कि विश्वविद्यालय में डा आनंद शंकर बहादुर ने अपनी सेवानिवृत्ति के तथ्यों को भी विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की बैठक से छिपाया और इस बीच कुलसचिव के पद की पात्रता समाप्त होने पर भी कार्य परिषद की बैठक में सचिव के तौर पर दो बार शामिल हो गए। याचिका में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि डॉ आनंद शंकर बहादुर को उनके कुलसचिव पद की पात्रता समाप्त होने पर किसी भी प्रकार की सेवावृद्धि का अधिकार राज्य सरकार, विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद अथवा कुलपति को भी नहीं हैं।
ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि कुलसचिव डॉ आनंद शंकर बहादुर नियमों को ताक में रखकर सारी हदें पार करते रहे और शासन को जानकारी भी नहीं हुई। आपको बता दें कि कुलसचिव पद पर आंनद शंकर बहादुर को विश्वविद्यालय में प्रति नियुक्ति पर राज्य शासन ने भेजा था। वे असिसटेंट प्रोफेसर के रुप में 60 वर्ष के बाद राज्य शासन में ही कार्य कर सकते हैं; विश्वविद्यालय में नहीं। साथ ही किसी की सेवानिवृति है तो सेवानिवृति के आदेश के अभाव में भी व्यक्ति को स्वंय अपना कार्यालय छोड़ देना पड़ता है एवं इसकी सूचना संस्थान को देना होता है। जो शासकीय सेवा संबंधी मूलभूत नियम है।
कुलसचिव विश्वविद्यालय में स्थापना और प्रशासन का दायित्व देख रहे थे। जिसके चलते उन्होंने अपने सेवानिवृति प्रावधानों को प्रशासन से छिपाया और नियमों का घोर उल्लंघन किया। साथ ही नियम के विरूद्ध आदेश की व्याख्या मनमाने ढंग से करते रहे। अब आगे देखना होगा कि इस मामले पर विश्वविद्यालय प्रबंधन और उच्च शिक्षा विभाग क्या कार्रवाई करती है.