तो यह राज है मशरूम व्यापारियों का सालाना कमा रहे हैं 15 से 20 लाख रुपए…..
बिलासपुर
मन में अगर दृढ़ इच्छा शक्ति हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो इंसान किसी भी मुकाम को हासिल कर सकता है. बस जरूरत है तो क्षेत्र की सही जानकारी और अच्छी समझ की. बिलासपुर जिला के नम्होल के रहने वाले नरेंद्र सिंह ने स्नातक शिक्षा एवं होटल मैनेजमेंट करने के बाद जुनून और कड़ी मेहनत से मशरूम की खेती करना शुरू की और क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल किया है
2008 में शुरू की थी मशरूम की खेती
बता दें, नरेंद्र सिंह ने साल 2008 में 100 मशरूम कम्पोस्ट बैग से छोटे स्तर पर मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा और अपनी कड़ी मेहनत से आज 15 लाख रुपये सलाना कमा रहे हैं. इतना ही नहीं वह अब तक कई लोगों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं. इसके साथ ही उन्होंने चंबाघाट सोलन में प्रशिक्षण भी लिया. हालांकि उन्होंने शुरुआत में कई समस्याओं का सामना किया. इसके बावजूद वह लगातार मशरूम खेती से जुड़े
25 लाख का हुआ कारोबार
उन्होंने कहा कि विभाग की ओर से मिली सहायता और विशेष ट्रेनिंग के बाद उन्होंने बड़े स्तर पर मशरूम की खेती शुरू की, जिससे अच्छी आय की शुरुआत हुई. वहीं नरेंद्र सिंह ने 3000 बैग क्षमता वाले वातानुकूल मशरूम फार्म की स्थापना की. इसके साथ ही उन्होंने कई लोगों को इससे जोड़कर उन्हें रोजगार भी उपलब्ध करवाया है. वहीं, नरेंद्र सिंह ने साल 2020-21 में 14,000 मशरूम कंपोस्ट बैग और 10,000 किलो बीज का उत्पादन एवं वितरण किया, जिससे उनका करीब 25 लाख का कारोबार हुआ है
ऐसा रहा शुरुआती सफर
नरेंद्र सिंह ने बताया कि शुरुआती दिनों में वह भी अन्य युवाओं की तरह होटल मैनेजमेंट के बाद किसी कंपनी में काम ढूंढने लगे थे, लेकिन काफी मशक्कत के बाद भी जब उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई तो उन्होंने उद्यान विभाग बिलासपुर के अधिकारियों से परार्मश लिया
इस सीजन में उन्होंने 1200 किसानों को मशरूम खाद के 28,000 बैग वितरित किए हैं. इसके साथ ही इन्हें खुम्ब क्षेत्र से जोड़ने का कार्य भी किया है. नरेंद्र ने बताया कि अब खाद और मशरूम की सप्लाई बिलासपुर जिला के साथ-साथ सोलन, मंडी, हमीरपुर, ऊना आदि जिलों में कर रहे हैं. वहीं नरेंद्र की काबलियत के आधार पर उन्हें पुणे आईसीएआर डायरेक्टरेट ऑफ मशरूम रिसर्च सेंटर चंबाघाट सोलन द्वारा राष्ट्रीय स्तर का बेस्ट मशरूम ग्रोवर अवार्ड ऑफ इंडिया से नवाजा गया इसके अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालय जम्मू से उन्हें किसान पुरस्कार भी प्रदान किया गया
वहीं नरेंद्र का कहना है कि 21वीं शताब्दी में युवाओं को नौकरी ढूंढने के लिए नहीं बल्कि नौकरी देने के लिए कार्य करना चाहिए. उन्होंने युवाओं से अपील की है कि इधर-उधर नौकरी के लिए भटकने की जगह किसी एक क्षेत्र में अपने स्किल डिवेलप करें ताकि वह किसानी और बागवानी से जुड़कर घर रहकर ही अपनी आजीविका चला सकते हैं और दूसरे लोगों को भी रोजगार देने का काम करें