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विकास के नाम पर अपने ही जमीन से बेदखल किए जा रहे हैं आदिवासी: प्रो. एस. एन. चौधरी

रायपुर। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययनशाला विभाग में “जनजातीय पारंपरिक सांस्कृतिक जीवनशैली: समकालीन परिदृश्य, संरक्षण के प्रयास एवं संभावनाएं” विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी -8,9,10 जून 2023 का आज उद्घाटन हुआ।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस के मुख्य वक्ता बरकतुल्ला विवि के भोपाल के पूर्व समाजशास्त्रीय प्रो. एस. एन. चौधरी (टैगोर फ़ेलो ,संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ) ने कहा कि आदिवासी समुदायों पर संबंधित काल के सभी शासकों ने अत्याचार किया। यह अत्याचार आज भी जारी है। अध्ययन में देखा कि भील समुदाय में से हर दूसरा परिवार साहूकारों के द्वारा ऋणग्रस्त है। किसी भी कालखंड में जब आदिवासी समुदाय और गैर-आदिवासी समुदाय का संपर्क हुआ है उसमें आदिवासी समुदाय का शोषण ही हुआ है। यही कारण है कि बहुत सारे समाज वैज्ञानिकों ने आदिवासी समुदाय को बाहरी समुदाय के प्रभाव से अलग रखने की बात कही है। वर्ष 1991 के बाद आर्थिक नीति में बदलाव का भी गंभीर प्रभाव आदिवासियों पर पड़ा है। आदिवासी विकास के नाम पर अपने ही जमीन से बेदखल किए जा रहे हैं।

कार्यक्रम में बस्तर से शामिल हुए पद्मश्री अजय मंडावी ने कहा कि विकास को पुनः परिभाषित करने की जरूरत है। यदि आदिवासियों को आधुनिक भौतिक संसाधनों की जरूरत नहीं है तो हम उसके पीछे क्यों पड़ें है कि वे इन संसाधनों का प्रयोग करें। उन्होने पर्यावरण संरक्षण के लिए कहा कि संस्कृति की रक्षा तभी की जा सकती है जब इसे दिल और दिमाग से जोड़ा जाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए विशेष अवसर है। उन्होने कहा कि हम अपने पारंपरिक संस्कृति को कुचलकर आगे नहीं बढ़ सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासियों को विकास की जरूरत को निर्धारित करने का अधिकार उन्हे दिया जाना चाहिए। विकास उनकी जरूरतों को पूरा करने वाला हो, विकास उन पर थोपा नहीं जाना चाहिए।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल प्रो. वर्जिनियस खाखा ने वर्तमान में उपस्थित पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर चिंता जताई। आगे उन्होने कहा कि आधुनिकता का नैतिकता से संबंध ना होने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। उन्होने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज्ञान नैतिकता से जुड़ी होनी चाहिए।

कार्यक्रम में संगोष्ठी के संयोजक प्रो. निस्तर कुजूर ने उपस्थित सभी अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि आदिवासी संस्कृति, जीवन आज भी प्रकृति के अनुकूल है। आज जब सतत विकास की बात की जाती है उसमें आदिवासी जीवन शैली को शामिल किया जाना चाहिए। समस्या यह है कि मुख्यधारा के समाज ने आदिवासियों को हमेशा पिछड़े के रूप में देखा है। आज इस नजरिए में बदलाव की जरूरत है साथ ही उनके द्वारा सामना किए जाने वाले गंभीर समस्याओं को दूर करने के लिए हस्तक्षेप भी किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत समाज शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. निस्तर कुजूर, प्रो. एल. एस. गजपाल, असोसिएट प्रो. हेमलता बोरकर वासनिक के द्वारा आम का पेड़ को देकर किया गया। विशिष्ट अतिथि तथा मुख्य वक्ता को कुलपति द्वारा राजकीय गमछा व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि व कुलपति को प्रो. निस्तर कुजूर के द्वारा राजकीय गमछा व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विभाग के शोधार्थी, विद्यार्थी तथा बाहर से आए हुए प्रतिभागी शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नरेश कुमार साहू के द्वारा किया गया।

 

 

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