सूरजपुर। सूरजपुर में चर्चित खोपाधाम में बलि चढ़ाए गए बकरे के मांस को कच्चा चबाने के प्रयास में एक युवक की जान चली गई। दरअसल मृतक बकरे के कटे सर से कच्चा मांस निकलकर खा रहा था। इसी दौरान ये हादसा हुआ। घटना बसदेई चौकी क्षेत्र की है। बता दें कि सूरजपुर के खोपाधाम में देवता की नहीं बल्कि दानव की पूजा होती है।
खोपा नाम के गांव में धाम होने के कारण यह खोपाधाम के नाम से प्रसिद्ध है। यहां छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी पूजा करने आते हैं। नारियल और सुपारी चढ़ाकर पहले लोग पूजा कर मन्नत मांगते हैं।
ऐसी मान्यता है कि यहां चढ़ाया हुआ प्रसाद भी घर नहीं लाया जाता। मन्नत पूरी होने के बाद मुर्गे.बकरों की बलि देने के साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है। पहले यहां महिलाओं के पूजा करने पर पाबंदी थी, लेकिन अब महिलाएं भी पूजा करने आती हैं।
ऐसी मान्यता है कि स्वतंत्र खुले आसमान के नीचे बकासुर ने खुद को स्थापित करने की बात श्रद्धालुओं को कही थी।
जानकारी के मुताबिक, मदनपुर गांव का रहने वाला बागर सिंह सोमवार को अपने रिश्तेदारों और 2 दोस्तों के साथ खोपा धाम गया हुआ था। यहां उसके किसी रिश्तेदार ने मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि दी।
CG News: मांस को प्रसाद रूप में ग्रहण करने के लिए रिश्तेदार ले गए। वहीं बागर और उसके 2 दोस्त बकरे के सिर को ले आए। यहां शराब भट्ठी से तीनों ने शराब भी खरीदी।
मृतक के साथी राकेश ने बताया कि तीनों खोपा धाम से सूरजपुर आ गए और वे लोग बकरे का सिर बनाने के लिए जा ही रहे थे कि बागर ने कहा कि उसे कच्चा मांस ही खाना है। बाकी साथियों ने उसे ऐसा करने से मना किया। लेकिन, उसने किसी की भी बात नहीं मानी।
पहले उसने कच्चा मांस ही खा लिया.. फिर उसने बकरे की आंख निकाली और खाने लगा। इसी दौरान आंख उसके गले में फंस गई। इससे सांस नली बंद हो गई। उसने आंख को निगलने का प्रयास भी किया लेकिन सफल नहीं पाया।
इस घटना के बाद मृतक के साथी देर रात उसे सूरजपुर के जिला अस्पताल लेकर पहुंचे जहां जांच के बाद डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस अस्पताल पहुंची। अब मंगलवार को शव का पोस्टमार्टम करवाकर परिजनों को सौंप दिया गया है।
मृतक बागर सिंह के दोस्त ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी है।
क्या है मान्यता
दानव की पूजा करने के पीछे की मान्यता है कि खोपा गांव के पास से गुजरी रेण नदी में बकासुर नाम का राक्षस रहता था। बकासुर गांव के ही एक बैगा से प्रसन्न हुआ और वहां रहने लगाए तब से यहां दानव की पूजा होने लगी। यही कारण है कि यहां पंडित या पुजारी नहीं बल्कि बैगा ही पूजा कराते हैं।
खोपा धाम में पिछले कई दशक से दूर.दराज से श्रद्धालु पूजा करने आते हैंए इसके बावजूद यहां मंदिर नहीं बनाया गया। इस संबंध में यहां के लोगों का कहना है कि बकासुर ने उसे किसी मंदिर या चारदीवारी में बंद करने के लिए नहीं कहा था। उसने खुद को स्वतंत्र खुले आसमान के नीचे ही स्थापित करने की बात कही थी।
तभी से खुले स्थान में बकासुर की पूजा होती है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मन्नत के लिए लाल कपड़ा बांधते हैं। खोपा धाम के बैगा भूत.प्रेत और बुरे साए से बचाने का दावा भी करते हैं। यहां भूत.प्रेत बाधा से छुटकारा पाने के लिए लंबी लाइन लगी रहती