रायपुर। पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के अतंर्गत स्थित एडवांस्ड कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) के हार्ट,चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग में 65 वर्षीय महिला के हृदय में टांका रहित एओर्टिक वाल्व लगाकर नया इतिहास रच दिया गया। सुनने में अटपटा जरूर लगता है, क्योकि बिना टांका (stich) लगाये कोई वाल्व कैसे लगा सकता है, परंन्तु यह सत्य है एवं यह संभव हो पाया है, मेडिकल क्षेत्र में नये-नये अनुसंधान से। जिसमें ऐसे वाल्व बनाया गया जिसमें टांका लगाने की जरूरत नही है एवं यह आसानी से हार्ट के अंदर फिट हो जाता है।
सर्जरी करने वाले डाॅ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि, इस वाल्व को उन मरीजों में उपयोग किया जाता है, जो हाई रिस्क कैटेगरी में आते है जैसे कि अत्यधिक उम्र हो जाना (60 साल के बाद) एवं हृदय का पंपिग पावर कमजोर हो जाना। इस वाल्व को लगाने का फायदा यह होता है, कि सिर्फ 15 से 20 मिनट में वाल्व का प्रत्यारोपण हो जाता है, जिससे मरीज का कार्डियो पल्मोनरी बायपास (CPB) cardiopulmonary bypass time टाइम कम हो जाता है जिससे मरीज के शरीर में सीपीबी मशीन का दुष्प्रभाव काफी कम हो जाता है। मरीज को वाल्व एरिया बहुत अधिक मिलता है जिससे अन्य वाल्व की तुलना में मरीज के शरीर में रक्त का प्रवाह ज्यादा होता है। इस वाल्व को लगाने से मरीज को खून पतला करने की दवाई खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
क्या होता है, सुचरलेस वाल्व (टांका रहित)
इस वाल्व में बोवाइन पेरीकार्डियम (bovine pericardium) का उपयोग होता है एवं इसको एक विशेष प्रकार के धातु जिसको निटिलाॅन कहा जाता है उसमें फिट कर दिया जाता है। जैसे ही यह वाल्व रक्त सम्पर्क में आता है तो यह वाल्व अपने आप आकार ले लेता है एवं पुराने वाल्व की जगह में अच्छे से फिट हो जाता है एवं टांका लगाने की आवश्यकता नहीं होती जिससे ऑपरेशन का समय बच जाता है।
यह वाल्व कार्डियोलाॅजिस्ट द्वारा लगाए जाने वाले (TAVI) वाल्व से कई दृष्टिकोण में अच्छा होता है। पहला यह बहुत ही किफायती होता है। टांका रहित वाल्व लगाने में मात्र 5 लाख का खर्च आता हैं। दूसरा टावी प्रोसीजर में वाल्व लगाने के लिए रेडियो ओपक डाई की आवश्यकता होती है, जिसके कारण मरीज के किडनी पर असर पड़ता हैं जबकि इस टांका रहित वाल्व लगाने में किडनी को ज्यादा नुकसान नही होता है। तीसरा टावी प्रोसीजर में नया वाल्व पुराने वाल्व को बिना निकाले ही लगाया जाता है, जिससे छोटा साइज का ही वाल्व लग पाता है, जबकि सुचरलेस वाल्व लगाने के लिए बीमार वाल्व में जमे चूने को निकालना पड़ता है। जिससे बड़े साइज का वाल्व फिट हो जाता है, जो कि मरीज के लिए अच्छा होता है।
आज यह मरीज पूर्ण स्वस्थ है एवं डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है। इस सरकारी संस्थान में मरीजों के स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्नत तकनीकों का प्रयोग एवं शासन द्वारा चलाये जा रहे योजनाओं का लाभ सभी लोगों को मिल रहा है।
इस ऐतिहासिक उपलिब्ध हासिल करने के लिए मेडिकल कालेज की डीन डाॅ. तृप्ति नागरिया एवं अम्बेडकर अस्पताल के अधीक्षक डाॅ. एस.बी.एस. नेताम ने कार्डियक सर्जरी विभाग के चिकित्सक एवं नर्सिंग स्टाॅफ को बधाई दी है।