कोरबा । छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आबादी क्षेत्र में वर्षो से बसे लोगोें को सरकार पट्टा बांट रही है। लेकिन कोरबा जिला में यहीं पट्टा अब राजनेताओं के लिए सिरदर्द बनता नजर आ रहा है। एक तरफ जहां पट्टा वितरण को लेकर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है। वहीं मंगलवार को एसईसीएल की खदानों से प्रभावित भूविस्थापितो ने पूर्ण काबिज भूमि का पट्टा सहित 14 सूत्रीय मांगो को लेकर कलेक्टोरेट का घेराव कर दिया गया। इस आंदोलन के दौरान ऐसा पहली बार देखने को मिला जब कलेक्टर कार्यालय के ठीक सामने सड़क पर ही आंदोलनकारियों ने खाना बनाकर दोपहर और रात का खाना खाया और सड़क पर ही सैकड़ो की संख्या में महिला और पुरूषों ने डेरा डाल दिया।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में अब महज़ डेढ़ महीने का ही वक्त बचा हुआ है। आगामी 4 से 5 दिनों में प्रदेश में निर्वाचन आयोग द्वारा आचार संहिता लागू करने की भी उम्मींद है। ऐसे में पूरे छत्तीसगढ़ सहित औद्योगिक नगरी कोरबा जिला में राजनीति चरम पर है। पिछले दिनों ही राजस्व मंत्री और कोरबा विधायक जयसिंह अग्रवाल ने आबादी भूमि पर वर्षो से काबिज लोगों को पट्टा वितरण कार्य का शुभारंभ किया गया। इस दौरान राजस्व मंत्री ने बकायदा सर्वे में छूटे हुए लोगों सहित निगम के सभी वार्डो के झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को सरकार की योजना के तहत पट्टा मिलने की बात कही थी। कांग्रेस के पट्टा वितरण को लेकर जहां जिले और प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है। वहीं राजनीति दलों की इस लड़ाई के बीच मंगलवार को कलेक्टोरेट के सामने एसईसीएल की खदान से प्रभावित भूविस्थापितों ने बड़ा आंदोलन किया।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के बैनर तले कोरबा कलेक्टर कार्यायल का घेराव करने पहुंचे सैकड़ो की संख्या में भूविस्थापितों में बड़ी संख्या में महिलाये शामिल थी। दोपहर के वक्त घंटाघर से रैली निकालकर कलेक्टर कार्यायल के सामने पहुंचे भूविस्थापितो ने अपने आंदोलन को महज ज्ञापन सौपने तक ही सिमित नही रखा, बल्कि कलेक्टोरेट का घेराव कर सभी आंदोलनकारी सड़क पर भी डेरा डालकर बैठ गये। इसके बाद भूविस्थापितों ने एसईसीएल के क्षेत्र में काबिज भू-विस्थापितों को पट्टा देने और पूर्व में अधिग्रहित भूमि मूल खातेदार किसानों को वापस करने सहित लंबित रोजगार प्रकरणों, पुनर्वास एवं खनन प्रभावित गांवों की समस्याओं के निराकरण के साथ 14 सूत्रीय मांगो को लेकर धरना दे दिया। इस आंदोलन में शामिल 50 से अधिक गांव के भू विस्थापितों ने कलेक्ट्रेट का घेराव के साथ “घेरा डालो-डेरा डालो” आंदोलन शुरू कर दिया है।
भूविस्थापितों के इस आंदोलन में गौर करने वाली बात ये रही कि सभी ने राशन-पानी के साथ कलेक्टोरेट के सामने डेरा डाल दिया था। लिहाजा एक तरफ की सड़क पर कब्जा कर बैठे भूविस्थापितों ने सड़क पर ही दोपहर का खाना बनाकर बीच सड़क पर भोजन किया। इस दौरान प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मौखिक आश्वासन देकर आंदोलन को समाप्त करने का काफी प्रयास किया गया,लेकिन आंदोलनकारी नही माने। रात करीब साढ़े 8 बजे तक चले वार्ता के बाद एसईसीएल के अधिकारियों से सार्थक निर्णायक चर्चा करने का लिखित आश्वासन मिलने के बाद ये आंदोलन खत्म हुआ। इस दौरान रात 9 बजे तक बड़ी संख्या में महिलांए-पुरूष सड़क पर ही जमे रहे। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष जवाहर सिंग कंवर और माकपा के जिला सचिव प्रशांत झा ने आरोप लगाया कि पिछले 40-40 वर्षो से भूविस्थापितों की जमीनों को एसईसीएल ने अपनी खदानों के लिए अधिगृहित कर लिया है।
लेकिन सालों बाद भी ये लोग अपने अधिकार और नौकरी के लिए भटक रहे है। प्रशांत झा ने प्रदेश में चले रहे पट्टा वितरण को महत चुनाव पट्टा वितरण करार दिया। उन्होने आरोप लगाया कि राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल हो या फिर कटघोरा विधायक किसी ने भी कोरबा के भूविस्थापितों के अधिकार उन्हे पट्टा देने को लेकर कभी भी विधानसभा में मुद्दा नही उठाया। यदि जनप्रतिनिधि भूविस्थिापितों का पक्ष लेते, तो आज उन्हे सड़क की लड़ाई नही लड़नी पड़ती। प्रशांत झा ने चेतावनी दिया है कि यदि आगामी बैठक में एसईसीएल के अफसर यदि निर्णायक फैसले नही लेते है, तो इसके बाद भूविस्थापित अपने आंदोलन को और भी उग्र कर एसईसीएल के चारो क्षेत्रीय कार्यायल में बोरिया-बिस्तर के साथ पहुंचेंगे और वही डेरा डालकर अपने अधिकार के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे। खैर चुनावी साल है, ऐसे में भूविस्थापितों ने भी अपनी मांगो को लेकर एक बार फिर राजनेता और एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में अब ये देखने वाली बात होगी कि सालों से अपने अधिकार के लिए लड़ रहे इन भूविस्थापितों के पक्ष में कोई सार्थक निर्णय हो पाया है, या फिर ये आंदोलन और भी उग्र होगा…..ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।