रायपुर । छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस अन्य पिछड़ा वर्ग {OBC} के बड़े वोट बैंक को साधने की जुगत में लगी हुई है। ऐसे में अमित शाह के रायगढ़ के रैली में पूर्व IAS ओ.पी.चौधरी को जीताने के बाद बड़ा आदमी बनाने के दावे ने प्रदेश में OBC फैक्टर को एक बार फिर बल दिया है। उधर राहुल गांधी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी ओबीसी वर्ग की पैरबी करने के साथ ही जातीय जनगणना के पक्षधर है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या छत्तीसगढ़ में सरकार बनती है….तो क्या अगला मुख्यमंत्री एक बार फिर ओबीसी वर्ग से होगा ? और क्या ओबीसी वर्ग से चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों को मंत्रिमंडल में मजबूत पोर्टफोलियो दी जायेगी ?
छत्तीसगढ़ में पहले चरण के 20 विधानसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। जिसके बाद सूबे की 70 सीटों पर दूसरे चरण के चुनाव के लिए घमासान मचा हुआ है। प्रदेश की मौजूदा राजनीति पर गौर करे तो सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां ओबीसी वर्ग को साधने में जुटी हुई है। फिर चाहे बात देश के प्रधानमंत्री की हो….केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की या फिर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की। छत्तीसगढ़ के चुनावी रैलियों में ये सभी बड़े नेता ओबीसी कार्ड पर जोर देते हुए इस वर्ग के मतदाताओं को साधने पर पूरा जोर लगाये हुए है। हालांकि प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने और जातिगत जनगणना को लेकर पूरे देश में माहौल बना रही कांग्रेस ओबीसी प्रत्याशी उतारने के मामले में भाजपा के मुकाबले तीन प्रतिशत पीछे है। मतलब बीजेपी ने इस बार छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में 33 ओबीसी कैंडिडेट को टिकट देकर मैदान में उतारा है, जो कि 36.7 प्रतिशत होता है।
वहीं सत्ताधारी कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों पर सिर्फ 29 ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो कि 33.22 प्रतिशत होता है। आपको बता दें कि प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 42 प्रतिशत की आबादी ओबीसी हैं। यही वजह है कि दोनों ही पार्टियां इस वर्ग को नजरअंदाज करने की जोखिम कभी नहीं उठातीं। कांग्रेस और भाजपा ने जिन सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा हैं उनमें साहू, कुर्मी, यादव, कलार, रजवार आदि जाति के प्रत्याशी प्रमुख रूप से हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ को आदिवासी बाहुल्य प्रदेश माना जाता रहा है। मगर ओबीसी वर्ग का दावा है कि प्रदेश में उनकी आबादी 52 प्रतिशत है जबकि क्वांटिफाइबल डाटा आयोग की गणना के अनुसार इस वर्ग को 42 प्रतिशत तक माना गया है। ऐसे में प्रदेश में ओबीसी वोटर एक बड़ा चुनावी फैक्टर हैं।
BJP और कांग्रेस के मंत्रिमंडल में OBC से ज्यादा दूसरे वर्ग का रहा दबदबा….!
देश के पीएम हो या फिर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ओबीसी समुदाय को लेकर जमकर राजनीति कर रहे है। एक तरफ जहां पीएम मोदी खुद को ओबीसी वर्ग से बताकर इस समुदाय को साधने की कोशिश में जुटे हुए है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस सांसद राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में चुनावी रैली के साथ ही दिल्ली में भी जातीय जनगणना और ओबीसी वर्ग को लेकर केंद्र सरकार को लगातार घेर रहे है। राहुल गांधी पीएम मोदी पर आरोप लगाते है कि भारत सरकार के 90 सेक्रेटरी में महज 3 ओबीसी वर्ग के सेक्रेटरी है, जो कि देश के 5 प्रतिशत बजट को नियंत्रण करते है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में ओबीसी के नाम पर जिस लेवल की राजनीति हो रही है, उस वर्ग से आने वाले विधायकों को उतना वेटेज नही दिया गया। मतलब साफ है बीजेपी के शासन काल पर नजर फेरे तो साल 2013 में डाॅ.रमन सिंह की सरकार में गठित मंत्रिमंडल में सर्वाधिक जनरल और एससी-एसटी वर्ग के विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दिया गया, जबकि ओबीसी वर्ग से सिर्फ 3 विधायक ही मंत्री बन सके। उधर कांग्रेस की सरकार में भले ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओबीसी वर्ग से आते है, लेकिन इस सरकार में भी महज 3 ओबीसी विधायकों को ही मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया।
PM मोदी और अमित शाह के दावों के क्या है मायने ?
रायगढ़ की रैली में अमित शाह ने पूर्व आईएएस ओ.पी.चौधरी के पक्ष में माहौल बनाने रोड शो किया था। इस रोड शो के दौरान अमित शाह ने सार्वजनिक तौर पर जनता के बीच ये कह दिया कि आप लोग ओ.पी. को वोट देकर जीता दे, फिर मैं इसे बड़ा आदमी बना दूंगा। ओबीसी वर्ग से आने वाले ओ.पी.चौधरी को लेकर अमित शाह के दिये इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे है। मौजूदा राजनीति में भले ही पूर्व सीएम डाॅ.रमन सिंह का सूबे की सियासत में बड़ा चेहरा है। लेकिन पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक की कमान ओबीसी वर्ग के नेताओं के हाथ में दे रखा है। अमित शाह के इस बयान से अब अनुमान लगाया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता में यदि बीजेपी वापसी करती है,तो पार्टी सत्ता की कमान ओबीसी वर्ग के हाथों में दे सकती है। लेकिन फिर से वहीं सवाल कि…. क्या मंत्रिमंडल में ओबीसी वर्ग की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी ? क्योंकि पिछले 15 साल के बीजेपी शासन काल में ऐसा कभी भी नजर नही आया। खैर अभी चुनाव परिणाम आने में थोड़ा वक्त है। लेकिन प्रदेश में चल रहे ओबीसी पाॅलिटिक्स पर अब चर्चा इस बात पर भी होने लगी है… कि नयी सरकार के मंत्रिमंडल में ओबीसी वर्ग के विधायकों की संख्या बढ़ेगी या फिर हर बार की तरफ इस वर्ग को सिर्फ वोट बैंक के लिए सिर्फ इस्तेमाल किया जायेगा ?