होलिका दहन की यहाँ कुछ अलग ही परम्परा है लकड़ी नहीं नारियल जलाकर करते हैं पूजा?
धर्म : भारत के बड़े त्योहारों में से एक होली का त्योहार आने में बस कुछ ही दिन बचे हैं. होली रंगों, खुशियों, जोश और उत्साह का त्योहार माना जाता है. होली का त्योहार आपसी प्रेम और भाई चारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार भी माना जाता है. होली का हुड़दंग देश में ही नहीं विदेशों में भी जोर शोर के साथ होता है.
होली के हुड़दंग और रंगों की मस्ती के साथ साथ होलिका दहन भी खास होता है. सभी जगह रंगों की होली से एक दिन पहले दिन में होलिका पूजन के बाद शाम को होलिका दहन किया जाता है. होली पर होलिका दहन का भी विशेष महत्व माना जाता है. यूं तो दहन के लिए हर जगह लकड़ी और गोबर के सूखे कंडे जमाकर होलिका बनाई जाती है, लेकिन कानपुर देहात के जुनेदपुर में लकड़ी की नहीं बल्कि नारियल की होलिका जलाई जाती है. इस परंपरा के पीछे कुछ विशेष कारण बताए जाते हैं.
बालाजी धाम मंदिर में जलाई जाती है नारियल की होलिका
कानपुर देहात के मलासा ब्लाक के जुनेदपुर गांव के पास बालाजी धाम मंदिर है. यहां पर लकड़ी की होलिका नहीं बनाई जाती है. इसी मंदिर के पास पिछले कुछ सालों से नारियल की होलिका का दहन किया जा रहा है. कहा जाता है कि इस मंदिर में पिछले एक दशक से नारियलों की होली जलाने की परंपरा शुरू हुई थी जो आज भी जारी है.
लाखों नारियलों से बनाई जाती है होलिका
यहां हर साल एक लाख से ज्यादा नारियलों की होलिका बनाई जाती है. कहा जाता है कि सवा लाख से डेढ़ लाख नारियलों का इस्तेमाल तक होलिका बनाने में आराम से हो जाता है. नारियल के साथ साथ इस होलिका में गोबर के सूखे उपले या कंडे ही लगाए जाते हैं.
कहां से आते हैं लाखों नारियल
कानपुर देहात में जुनेदपुर गांव के पास बालाजी धाम मंदिर का निर्माण हुआ था. इस मंदिर में बहुत अधिक मात्रा में भक्त नारियल चढ़ाते हैं इसलिए इन नारियलों के अच्छे उपयोग के लिए ही नारियलों से होलिका बनाने की परंपरा शुरू की गई.
होलिका लगने पर कानपुर के अलावा आसपास के शहरों के लोग भी यहां आते हैं और नारियल को अपने सिर ऊपर से घुमाकर होली में रख देते हैं. क्योंकि मान्यता है कि जो कोई भी अपने सिर से नारियल उतारकर रखता है उसके जीवन के सारे संकट और दुख होलिका की अग्नि में नारियल के साथ जल जाते हैं, और उसका जीवन खुशहाल हो जाता है.
इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य
इस परंपरा के पीछे का उद्देश्य भगवान के पूजा में चढ़ने वाले नारियलों को फेंकने की बजाय एक जगह एकत्र करना था ताकि इन नारियलों को गंदगी में जाने से बचाया जा सके और पेड़ों की रक्षा की जा सके, क्योंकि होलिका दहन के लिए पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए नारियलों की होलिका जलाने के पीछे समाज को पेड़-पौधों की रक्षा करके पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना है.
नारियल की होली जलाने के पीछे का एक वैज्ञानिक कारण ये भी है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है. क्योंकि नारियल का धुंआ जहां तक जाता है, उस क्षेत्र की बीमारियां दूर हो जाती हैं और वातावरण शुद्ध होता है. जिससे इंसान के साथ पशु पक्षी भी स्वस्थ रहते हैं.
दूर दूर से आते हैं लोग
कानपुर देहात की इस होली को देखने के लिए दिल्ली, हरियाणा, लखनऊ, अहमदाबाद, चित्तौड़, भोपाल, झांसी, कानपुर, फतेहपुर, कानपुर देहात और आसपास के क्षेत्रों से लोग आया करते हैं. ये सब श्रद्धालु भी होली में नारियल चढ़ाते हैं. यहां भक्तों को मनोकामनाएं पूरी होने के कारण हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है.