ग्राम करमा म सुगघर मनाइन अक्ति परब
रवि कुमार तिवारी ।
आरंग भगवान् परशुराम के जन्मोत्सव ल हमन छत्तीसगढ़ म अक्ति के रूप म मनाथन अउ जानथन
आवव जानथन एखर बारे मे भूले बिसरे याद अक्ती हमर किसानी के नवा बछर,
छत्तीसगढ़ म जेन अक्ती के परब मनाए जाथे, वो ह किसानी के नवा बछर के रूप म ही मनाए जाथे. पुतरा-पुतरी के बिहाव या ए दिन बर-बिहाव खातिर शुभ मुहूर्त संग अउ कतकों अकन जुड़े मान्यता मन ओकर सहायक परंपरा के अंग आय, जे मन आने-आने क्षेत्र ले आए लोगन संग इहाँ आ के सॉंझर-मिंझर होवत गे हवंय.
हमर इहाँ अक्ती के दिन जेन सबले बड़का परंपरा के निर्वाह करे जाथे ओला हमर महतारी भाखा म ‘मूठ धरना’ कहिथन. ए मूठ धरई ह असल म अपन-अपन खेत म खरीफ के नवा फसल खातिर बीजा बोवई के शुरुआत आय.
ए बीज बोए के परंपरा ल पूरा करे खातिर गाँव के सबो किसान अपन-अपन घर ले धान लेके एक निश्चित जगा सकलाथें. कोनो कोनो गाँव म ठाकुर देव या ठाकुर दिया म सकलाथें त कोनो गाँव म अउ कोनो मेर, जिहां वो गाँव के बइगा ह सबो झन के बिजहा ल संघार के पूजा पाठ करथे, मंत्र के माध्यम ले अभिमंत्रित करथे. तहाँ ले सबो किसान मनला वो अभिमंत्रित धान के बिजहा ल बॉंट दिए जाथे. किसान मन इही अभिमंत्रित धान के बिजहा ल अपन खेत म लेग के बोवाई करथें.
कतकों गाँव मन म बइगा के द्वारा बिजहा के धान ल अभिमंत्रित करे के परंपरा नइ देखे म आवय. तब अइसन गाँव के किसान मन अपन खेत म ओनारे बर रखे धान के बिजहा ल अपन कुल देवता, ग्राम देवता आदि मन म समर्पित करत खेत डहार जाथे अउ जतका बिजहा बॉंच जथे वो मनला खेत म बो देथे. ए किसम ‘मूठ धरे’ के परंपरा संपन्न हो जाथे.
अक्ती परब के दिन ही संझौती बेरा गाँव के सब किसान अउ पौनी पसारी संग कमइया मन कोनो चउंक-चाकर जगा म सकलाथें, जिहां अपन-अपन सामरथ के मुताबिक सौंजिया, पहाटिया, मरदनिया, धोबी आदि मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति करथें. जे सौंजिया, कमइया अउ पौनी पसारी मन अपन जोंगे धान-पान अउ रुपिया पइसा के मुताबिक ठाकुर मन ले हुंकारू पा जाथें, ते मन अपन-अपन ठाकुर के पॉंव-पैलगी कर के चोंगी-माखुर पीयत बुता-काम ल लग जाथें.
ए सब के संग ही अक्ती के दिन ले कतकों नवा कारज जइसे नवा करसी म पानी पीए के, आमा जइसन मौसमी फल ल टोरे अउ खाए के शुरुआत घलो करथें.
नान-नान नोनी मन बर ए ह पुतरा-पुतरी के बिहाव के मयारुक बेरा होथे. अक्ती के आगू दिन संझौती बेरा बने बाजा-रूंजी संग चुलमाटी के नेंग करे रहिथें, तेला ए दिन मड़वा ठउर म लानथें तहाँ ले तेल, हरदी मायन, बरात परघनी आदि सबो नेंग ल पूरा करत टिकावन करथें, पुतरा-पुतरी के बिहाव ल संपन्न करथें.
आज इहि बच्छर के सुरता देवावत नान्हे नान्हे लइका मन सँग गाँव के युवती मन तीन जगह मदवा गडयाय रहिस जेमा धनेशवरी वर्मा, सावित्री मानिकपुरी, करुणा मानिकपुरी, रानी पटेल, खुशी यादव, डागेश्वरी विश्वकर्मा, नेहा यादव,गायत्री वर्मा दुर्गा चौक,मोतीलाल वर्मा के सहयोग से पूजा निषाद,भूमिका वर्मा, काजल वर्मा, जया वर्मा, खोमिका निषाद, सहड़ा चौक, शीतला चौक म सुरुचि, लवन्या, साक्षी, दुर्गेशवरी, मोक्ष आदि,, अउ बजनिया रहिस चंदन यादव, साहिल यादव, विकास वर्मा, पुरब मानिकपुरी, प्रेम वर्मा मोनू पटेल,हमर करमा गाँव म परब ल बढ़ सुगघर मनाइन जेमा सगा रूप म पुराना सरपंच साहेब अनिल सोनवानी घलो नेवता म पहुंचे रहिस अउ टिकावन म सरीख होइस सबला शुभकामना दिस
अक्ती के दिन ढाबा भरे के घलो परंपरा हे. ए दिन किसान मन अपन-अपन अंगना म गोबर के तीन ठक खंचवा बनाथें. इही गोबर ले बने खंचवा ल ढाबा कहे जाथे.
फेर ए ढाबा म एक म धान दूसर म ओन्हारी जइसे- तिंवरा या राहेर अउ तीसर म पानी भरे जाथे बने टिपटिप ले.
ढाबा म धान ओन्हारी अउ पानी भरे के बाद फेर ओकर आगू म हूमधूप देके पूजा करे जाथे. तेकर पाछू फेर बिजहा बोनी के टुकना म बीजहा, कुदारी, आगी पानी अउ हूमधूप धर के खेत म बोवई के मूठ धरे जाथें.
अक्ती के दिन घर के देवाला म नवा फल ल नवा करसी के पानी खातिर चढ़ाए जाथे. अपन पुरखा मनला सुरता कर के तरिया या नदिया म उरई के पौधा (घास) गड़िया के नवा करसी या तांबा के चरू म पानी डारथें. अपन पुरखा मनला पानी दिए जाथे, जइसे पितर तरपन म करे जाथे.
ए किसम सब अपन अपन परंपरा अउ मान्यता के मुताबिक अक्ती परब ल मनाथें.
अक्ती आगे घाम ठठागे चलव जी मूठ धरबो
अपन किसानी के शुरुआत सुम्मत ले सब करबो
बइगा बबा पूजा कर के सबला पहिली सिरजाही
फेर पाछू हम ओरी-ओरी बिजहा ल ओरियाबो
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