धार्मिक

क्या आप जानते हैं पितरों का श्राद्ध करते हुए अनामिका उंगली में क्यों पहनते है कुशा की अंगूठी, जानें गरुड़ पुराण में ये वजह…

नई दिल्ली : गणेशोत्सव का दौर इन दिनों चल रहा है जिसमें भगवान गणेशजी की उपासना भक्त कर रहे है कुछ दिन में ही बप्पा हम लोगों से विदा लेकर अपने लोक वापस चले जाएंगे। गणेश विसर्जन के दिन से ही इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत होने जा रही है इसमें पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखते हुए वंशज पूजा-पाठ और नियम करेंगे। पितृ पक्ष वह मौका होता है जिसमें वंशज, पितरों के प्रति की गई गलती की माफी मांगते है और उनकी इच्छा के अनुसार पसंद का भोग उन्हें अर्पित करते है।

वैसे तो पितृ पक्ष में कई नियम है लेकिन कई नियमों की जानकारी हमें नहीं होती है इसमें ही पितृ पक्ष में पिंडदान का नियम करते हुए अंगूठे के माध्यम से पिंडों को जल अर्पित करते है तो वहीं पर हाथों की अनामिका अंगली में कुशा की अंगूठी पहनते है आखिर इसके पीछे क्या नियम है चलिए जानते हैं इसके बारे में।

कुशा की अंगूठी पहनने का अर्थ
गरुड़, हिंदू धर्म में कुशा घास को पवित्र माना जाता है इसे लेकर एक कहानी प्रचलित है। कहते है कि, जब गरुड़ देव अमृत कलश लेकर स्वर्ग से आए थे तो उन्होंने कुछ समय के लिए कुशा के ऊपर यह कलश रख दिया था,तब से ही कुशा को बेहद पवित्र मानी गई है इसके कारण ही कई धार्मिक अनुष्ठानों में कुशा का इस्तेमाल किया जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के दौरान कुशा से अंगूठी बनाई जाती है, जिसे अनामिका उंगली में पहनते है। इसे लेकर धार्मिक मान्यताओं में माना गया है कि, अनामिका उंगली में तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है इसके हर भाग में भगवान निवास करते है। अनामिका के मूल भाग में भगवान शिव निवास करते हैं, मध्य भाग में विष्णु जी और अग्रभाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं।

जानिए श्राद्ध करते समय अंगूठे से दिया जाता है जल
पितृ पक्ष में श्राद्ध के नियमों में से एक और नियम किया जाता है। इसमें श्राद्ध पक्ष के दौरान अंगूठे के माध्यम से पितरों को जल अर्पित करते हैं तो उनकी आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है। इसके नियम में बताया जाता है कि, हथेली के जिस भाग पर अंगूठा स्थित होता है, वो भाग पितृ तीर्थ माना जाता है। ऐसे में जब आप पितरों को अंगूठे के माध्यम से जल अर्पित करते हैं तो, पितृ तीर्थ से होता हुआ जल पितरों के लिए बनाए गए पिंडों तक पहुंचता है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। इसीलिए पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल अर्पित करना उचित माना जाता है।

इस प्रकार ही पितृ पक्ष के दौरान कुशा की अंगूठी पहनते हुए अंगूठे से जल दिया जाता है तो वहीं पर श्राद्ध के नियम होते है जिनका पालन उस दौरान करना जरूरी होता है।

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