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धार्मिक : आखिर क्यों वेश्यालय के आंगन की मिट्टी से बनाई जाती हैं मां दुर्गा की मूर्ति, जानिए इसकी मान्यता

देशभर में मां दुर्गा के पावन पर्व यानि शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो गई हैं जो 12 अक्टूबर यानि दशहरा के दिन तक जारी रहेगी। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना बड़े ही सच्चे मन से भक्त करते हैं।

नवरात्रि के एक महीने पहले से ही जहां पर मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनना शुरु हो जाती हैं तो वहीं क्या आपको पता हैं मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी ली जाती है। ऐसा क्यों किया जाता है चलिए जानते हैं इसके कौन सी मान्यता प्रचलित है। इसकी जानकारी लेख में पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास दे रहे हैं जो इस बात को स्पष्ट करती है।

मानते हैं नारी शक्ति का सम्मान

हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, अगर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए प्रतिमा वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं तो अच्छा माना जाता हैं इसके बिना मूर्ति अधूरी मानते है। इस दौरान कहा गया हैं कि, जो माता की प्रतिमा बना रहे हैं मूर्तिकार या पुजारी, वे मिट्टी मांगने जाए तो उनका मन सच्चा होना चाहिए और नारी शक्ति का सम्मान करते हुए सिर झुकाकर ही मिट्टी मांगी जाती है। इस तरीके से जब वेश्या से मिट्टी मांगते हैं तो वे खुशी से देती हैं क्योंकि सम्मान उनके लिए काफी जरूरी है। इस मिट्टी से मूर्ति पूर्ण मानी जाती है। कहते हैं कि, वेश्याओं के आगे सिर झुकाना इस बात का संदेश देता है कि नारी शक्ति के रूप में उन्हें भी समाज में बराबरी का दर्जा दिया गया है।

ज्योतिषाचार्य यह भी कहते है कि, घर की स्त्री लक्ष्मीस्वरूपा मानी जाती है. यानि साक्षात लक्ष्मी का रूप. ऐसे में जब कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर वेश्या के पास जाता है तो उसके सारे पुण्य कर्म उसके आंगन में ही छूट जाती है. इसलिए वेश्याओं की आंगन की मिट्टी पवित्र हो जाती है पुरुष वेश्यालय में जाता हैं तो वह पापी कहलाता है।

मिट्टी के अलावा इन चीजों की भी जरूरत

जैसे कि, वेश्यालय की मूर्ति शुद्ध मानी जाती हैं वहीं पर इसके अलावा यहां की और भी चीजें इस दौरान जरूरी होती है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास कहते है कि, वेश्याल के आंगन की मिट्टी के साथ ही गंगा तट की मिट्टी, गोमूत्र और गोबर का प्रयोग भी मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए किया जाता है जो शुद्ध माने जाते है।

पौराणिक कथा है प्रचलित

यहां पर वेश्यालय की मिट्टी क्यों जरूरी हैं इसे लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार, एक बार कुछ वेश्याएं स्नान के लिए गंगा नदी जा रही होती हैं. तभी उनकी नजर एक कुष्ठ रोगी पर पड़ती है जो गंगा तट पर बैठा होता है और आते-जाते लोगों से गुहार लगाता है कि कोई उसे गंगा स्नान करवा दे. लेकिन लोग उस कुष्ट रोगी को स्नान कराना तो दूर की बात, उसकी ओर देख भी नहीं रहे थे. तब वेश्याओं को उसपर दया आई और उन्होंने उस कुष्ठ रोगी को गंगा स्नान करवाया. वह कुष्ठ रोगी और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव थे, वे वेश्याओं की इस सहायता से प्रसन्न हुए।

उन्होंने वेश्याओं से वरदान मांगने को कहा. तब वेश्याओं ने कहा कि हमारे आंगन की मिट्टी से मां दुर्गा की प्रमिता का निर्माण हो. शिवजी ने वेश्याओं की यही वरदान दिया. इसके बाद से ही गंगा तट के साथ ही वेश्याओं के आंगन की मिट्टी से भी मां दुर्गा की मूर्ति बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई जो अब तक चली आ रही है।

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