दशहरा पर्व में शराबियों का खलल-पर्व की गरिमा को धूमिल करने का प्रयास…
खरोरा : कल जहाँ पूरा देश मे असत्य पर सत्य की जीत तथा श्री राम द्वारा अधर्म पर धर्म का विजय पताका लहराने का पर्व दशहरा को बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है शहरो मे जहाँ आतिशबाजी की जाती है तो ग्रामीण अंचलो मे रामलीला के द्वारा रावण दहन करने की परम्परा है पर नशे मे धुत कुछ युवकों के व्यवहार और कृत्य से त्यौहार की सारी रौनक़ आयोजको के लिए चिंता का विषय बन जाता है जिसका उदाहरण एक छोटे से ग्राम करमा मे पिछले 70 वर्षो से लगातार रामलीला के द्वारा रावण दहन (दशहरा) उत्सव मनाया जाता है इस वर्ष भी उत्साह के साथ मनाया गया जिसमे ग्रामीण महिलाओ बुजुर्ग बच्चो युवाओ के साथ-साथ आस-पास के लोग भी जुटे थे किन्तु आज हं देख सकते है की आये दिन धार्मिक आयोजनो मे विभिन्न प्रकार के लड़ाई झगड़े खून- खराबा विभिन्न प्रकार की अश्लीलता आम बात हो गयी है.
सभी त्यौहारो मे जो अधिकतर घटना होती है वह शराब या अन्य मादक पदार्थो की सेवन से हो रहे है कल रात की घटना मे सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार मंच के आस-पास गाली-गलौज होने के कारण राम जी का राज्यभिषेक मध्य मे ही बंद करना पड़ा और ये घटना पिछले वर्ष भी हुई थी इस कारण स्थानीय थाना से शांति व्यवस्था की मांग की गयी थी लेकिन आस-पास सभी जगह कार्यक्रम होने के कारण और थाने मे बल की कमी के कारण उपयुक्त समय प्रदान नहीं कर पाए विगत वर्षो से कुछ असामाजिक और अराजकता के विचार रखने वाले व्यक्तियों द्वारा पुनः इसे धूमिल करने का प्रयास किया गया जो समाज के साथ साथ धर्म का भी अपमान है.
सनातन को अपना धरोहर मानने वाले हिन्दू समाज के ही कुछ रक्त बीज सनातन मे कुष्ठ रोग की भांति फैले है इन दुर्जनों द्वारा रामलीला जैसे धार्मिक आयोजन को धूमिल करने का कार्य हो रहा है जिसका मुख्य कारण प्रदेश मे चल रहे अवैध शराब के कारण कही भी किसी भी समय शराब उपलब्ध होने से अधिक मदिरा का सेवन करते है और इसे ही त्यौहार मानते है बिना पिए इनका त्यौहार ही नहीं होता कुछ मानसिक विकृति वालो लोगो का विवाद करना ही मूल उद्देश्य होता है जो हमारे सनातन के आराध्य श्री राम जी की इस पावन पुनीत कार्य मे भी खलल विरोध करने से नहीं चूकते ये धर्म-अधर्म की पराकाष्ठा को समझने जानने से अनभिज्ञ लोग व्यक्तिगत व्यवहार करने की तो छोडो समाजिक रूप से अनादर को को अपना शान मानकर अनेक प्रकार से धर्म कार्य को धूमिल करने को अपना कार्य और उद्देश्य बना बैठे है प्रशासन भी अपनी पकड़ बनाने मे नाकामयाब है जिसका कारण उचित बल की कमी कही जा सकती है क्योंकि हमारे खरोरा क्षेत्र मे अनेक जगह कार्यक्रम होने के कारण बल और समय की कमी है.
वही स्थानीय लोगो की उदासीनता के कारण इन अराजकता तत्वों मे लीन व्यक्तियों के हौसले बुलंद है जिससे आमजन की आस्था को ठेस पहुंचता है और सनातन संस्कृति को संरक्षित कर प्रचार करने वाले स्वयं को असुरक्षित महसूस करते है और समाजिक कार्यों के आयोजन करने कराने से कतराते हैआज यह कहना हृदय विदारक है की हमारे ही धर्म से जुड़े लोग अपने ही आराध्य के कार्य मे खलल उत्पन्न कर रहे है कार्यजर्म मे बाधा उत्पन्न कर अपने आप को तोपचंद समझ रहे है जिससे विविध पारम्परिक आयोजनो मे आस्था उत्साह की कमी हो रही है और हमारी संस्कृति घटती जा रही है ख़ासकर ये ग्रामीण अंचल की मुख्य समस्या बन गयी है अब इस समस्या का समाधान करने हेतु मातृ शासन प्रशासन को जिम्मेदार मानना भी ठीक नहीं यदि हमें हमारे धर्म संस्कृति की इन विधर्मि सोच वाले लोगो से रक्षा करनी है तो पुरे समाज को स्वयं सामने आकर संगठित होना होगा और इन्हे उचित जवाब देना होगा जिससे हमारा संस्कृति और विरासत संरक्षित रहे दशहरा पर्व मे हुए ये असभ्य कार्य की निंदा जितने कदे शब्दो मे की जाए वो भी कम है क्योंकि जिस आराध्य को हं होने हृदय नतमस्तक मे स्थान देते है वहा शराब के नशे मे धुत ये अधर्मी गाली-गलौज के साथ अनैतिक कृत्य करके गाँव के का माहौल ही खराब करते है साथ ही आस्था को तार तार करने वाली इनके अपशब्द हृदय को चुभते है हमारी संस्कृति हमारी परम्परा ही हमारी धरोहर है हमारे देश की तो पहचान ही सनातन संस्कृति से की जाति है इसे संरक्षित करना हमारा परम् कर्तव्य है और ये कर्तव्य बोध हर सनातनी मे होना चाहिए क्योंकि वर्तमान मे हमें गैर मजहबो से कही अधिक अपने हिन्दू धर्म के ही कुछ जयचंद और विधर्मियों से बचने की आवश्यकता क्योंकि ये दो मुंहे साँप की तरह है जिसका फन हमेसा धर्म विरोध मे ही उठ रहा है इसका समाज मे कड़ी विरोध/उचित कार्यवाही के साथ-साथ बहिष्कार भी करने की जरूरत है जिससे भारत की आत्मा कहे जाने वाले सनातन संस्कृति को सुरक्षित किया जा सके