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Dhanteras 2024: एक चोर कैसे बन गए धन के देवता, धनतेरस पर पढ़ें धन के देवता कुबेर की कहानी…

धनतेरस के शुभ अवसर पर सुख, समृद्धि और धन के देवता कुबेर (Kuber) की पूजा की जाती है। आज शाम भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी के साथ कुबेर जी की पूजा होती है। क्या आप जानते हैं कि जिन भगवान कुबेर की पूजा आप करते हैं, वह कौन हैं, उनका बचपन कैसा था और उन्हें धन का देवता क्यों बनाया गया, अगर नहीं तो आज धनत्रयोदशी पर आइए जानते हैं धन के देवता की कहानी…

कुबेर देवता का बचपन कैसा था

भगवान कुबेर का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम गुणनिधि था। घर में हमेशा अभाव रहता था। दो वक्त का खाना भी सही तरह नहीं बन पाता था। घर की स्थिति सुधारने के लिए गुणनिधि ने चोरी करने की योजना बनाई। एक रात वह चोरी के लिए भगवान शिव के मंदिर में जा पहुंचे। मंदिर में रखे रत्नों को देखकर उनका मन मोहित हो उठा। उन रत्नों को सही तरह देखने के लिए उन्होंने दीपक जलाया। दीपक जलते ही भगवान शिव प्रसन्न हो उठे और उन्होंने गुणनिधि को अगले जन्म में धन का देवता बनने का वरदान दे दिया।

भगवान कुबेर का जन्म

अगले जन्म में गुणनिधि, कुबेर बनकर ऋषि विश्रवा और इल्लविदा के घर में पैदा हुए। वह रावण के सौतेले भाई थे। कुबेर दैवीय गुण और रावण राक्षसी प्रवृति का था, जिसकी वजह से दोनों की आपस में कभी नहीं बनी। कुबेर इस जन्म में धन के देवता बने और उनके पास अकूत खजाना था। उन्हें दिशाओं के आठ संरक्षकों (दिक्पालों) में से एक माना जाता है। वह उत्तर दिशा की देखरेख करते हैं। उुन्हें यक्षों का राजा भी माना जाता है।

कुबेर का स्वरुप कैसा है

भगवान कुबेर रत्नों से सजे एक मोटे पेट वाले भगवान के तौर पर दिखाए जाते हैं। उन्हें तीन पैरों वाले या एक आंख वाले जैसी राक्षसी विशेषताओं के साथ भी दिखाया जाता है, जो उनका जटिल स्वभाव है। कई जगह कुबेर को महासागरों और नदियों का स्वामी भी बताया गया है। मत्स्य पुराण के मुताबिक, कुबेर ने कावेरी और नर्मदा नदियों के संगम पर कठोर तपस्या की। मान्यता है कि इस जगह जजो भी आकर स्नान करता है, उसके पाप धुल जाते हैं और भगवान कुबेर का आशीर्वाद मिलता है।

भगवान कुबेर का शरीर कैसा है

धन के देवता कुबेर को तीनों पैर इंसान की इच्छाओं पुत्र, धन और प्रसिद्धि के प्रतीक हैं। कुछ कहानियां उनके तीन पैरों को भगवान विष्णु के तीन कदमों से भी जोड़ती हैं। इसके अलावा कुबेर जी के 8 दांत और एक आंख दिखाए जाते हैं, जिनके बारें में कहा जाता है कि 8 दांत धन या समृद्धि यानी अष्ट लक्ष्मी के 8 रूपों का प्रतीक हैं। कुबेर जी का बड़ा पेट अपार संपत्ति और वैभव का प्रतीक माना जाता है। कई संस्कृतियों में बड़े पेट को समृद्धि से भी जोड़ा जाताता है।

कुबेर जी की एक ही आंख क्यों है

कहा जाता है कि एक बार कुबेर ने माता पार्वती को भगवान शिव की गोद में बैठे हुए देख लिया था। वो ईर्ष्यालु हो गए और उनके मन में वासना आ गई। इसी से माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने उनकी एक आंख खोने का श्राप दे दिया। एक आंख का न होना ईर्ष्या और अनुचित इच्छाओं का प्रतीक माना गया है। इसलिए कुबेर को एक पिंगला यानी एक आंखों वाला या पीली आंखों वाला कहा जाता है। कई वैदिक ग्रंथों में कुबेर को बुरी आत्माओं का सरदार या चोरों का सरदार भी बताया गया है, जो उन्हें राक्षसी प्रवृत्ति से जोड़ता है लेकिन बाद में उनका स्वभाव बदला और कठोर तपस्या कर उन्होंने ब्रह्मा जी को मनाया। जिसके बाद उन्हें धन का देवता बने का आशीर्वाद मिला।

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