नगरी निकाय चुनाव की चर्चा हुई तेज : दिसंबर अंत तक घोषित हो सकती है आरक्षण तय
रवि कुमार तिवारी,
खरोरा। छतीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. इस बार राज्य सरकार ने आरक्षण की सीमा 50% तक सीमित कर दी है. माना जा रहा है कि 20 दिसंबर को चुनाव तारीखों की घोषणा हो सकती है. जिसके तुरंत बाद ही आचार संहिता लागू होगी, वहीं 11 दिसंबर को अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन किया जाएगा. छत्तीसगढ़ में आरक्षण का यह बदलाव न सिर्फ पिछड़ा वर्ग बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेगा।
छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों की तैयारी जोरों पर है. राज्य सरकार ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय करने का फैसला किया है. इस नए प्रावधान से ओबीसी वर्ग को अधिक प्रतिनिधित्व मिलेगा. हालांकि जहां SC-ST की आबादी 50% से ज्यादा है. वहाँ ओबीसी आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा।
राज्य में पहली बार महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता के वोटों से होगा
इस फैसले से यह बदलाव जनता को अपनी पसंद के प्रतिनिधि चुनने का सीधा मौका देगा. मेयर का डायरेक्ट इलेक्शन और मेयर के लिए उम्र सीमा 21 से बढ़ाकर अब 25 साल कर दिया है. पार्षद का चुनाव 21 साल का यूथ लड़ सकेंगे. एक हजार मतदाताओं के लिए एक मतदान केंद्र का प्रावधान किया गया है. चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया तेज कर दी है ईदी कड़ी मे आज हम सत्ताधारी पक्ष के उम्मीदवार की घोसणा के संबंध ने जनता तथा बीजेपी के क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की अटकलो से संभावित सूची तय करने का प्रयास किया है
वर्तमान में चुनाव के मद्देनजर लगातार पार्टी संगठन में बैठकों का दौर भी शुरु हो गया है. जो दावेदारों है वे पार्टी वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात शुरु कर दी है. अब देखना यह होगा कि 50% आरक्षण का यह फैसला किस तरह छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनावों की तस्वीर बदलता है इससे आमजन मे खासा उत्साह है और उम्मीदवारी को लेकर युवाओं मे जोश है
भाजपा की ओर से कुछ बदलाव देखने को मिला है जिसमें नई पीढ़ी को राजनीति के मुख्यधारा में लाने के लिए संगठन में जरुरी बदलाव कर दिया है. लिहाजा उम्र सीमा तय कर दी है. मंडल अध्यक्ष के लिए अधिकतम 45 और जिलाध्यक्ष के लिए 60 साल उम्र का बंधन तय कर दिया है. इससे ज्यादा उम्र वालों को घर बैठना होगा. संगठन में पदाधिकारियों के लिए उम्र सीमा तय किए जाने के बाद से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या इस तरह के नियम और मापदंड चुनाव के दौरान टिकट वितरण में दिखाई देगा. संगठन में हुए इस बदलाव का नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारी चयन में दिखाई देगा या नहीं यह निश्चित रुप से भाजपाई रणनीतिकारों और पदाधिकारियों के सामने एक बड़ी चुनौती रहेगी।
नगर पंचायत खरोरा के लिए बीजेपी की पहली पसंद कौन हो सकता है?
इस बात की चर्चा आम है, खरोरा इलाका शुरू से ही बीजेपी का गढ़ रहा है, वर्तमान में भी यहां बीजेपी काबिज है अभी बीजेपी संगठन के अनिल सोनी अध्यक्ष के पद पर आसीन है , और खरोरा नपं पिछड़ा वर्ग बाहुल्य है ऐसे में यहां OBC आरक्षण तय माना जा रहा है।
यदि आरक्षण OBC हुआ तो कौन और कितने प्रत्याशियों की दावेदारी?
वर्तमान नपं अध्यक्ष अनिल सोनी OBC से आते हैं और पार्टी में अपनी सक्रियता निरंतर बनाये हुए है इनकी दावेदारी पूर्व विधानसभा चुनाव में बीजेपी से MLA की थी परन्तु पार्टी की विचारधारा के साथ चले तथा पार्टी का कार्य किया और नगर मे बहुमत लाकर संगठन को मजबूत किया अतः बीजेपी इन ओर पुनः भरोसा कर सकती है लेकिन जिस अंदाज में बीजेपी की बैठक के दौरान नितिन नबीन ने उम्र को लेकर सीमाएं तानी है उससे युवा वर्ग को नेतृत्व की कमान मिलने की सम्भावना अधिक है और ऐसे में नए चेहरे की उम्मीद जताई जा रही है।
खरोरा नपं के लिए बीजेपी युवा मोर्चा के रायपुर ग्रामीण महामंत्री आयुष वर्मा का नाम भी दावेदारों में है
बीजेपी खरोरा मंडल के पूर्व भाजयुमो अध्यक्ष, राम राज परिवार खरोरा केशला के चार बार के अध्यक्ष और वर्तमान में भाजयुमो रायपुर ग्रामीण के जिला मंत्री आयुष वर्मा का नाम पहले क्रम पर माना जा रहा है, सूत्रों की मानें तो सर्वेयर टीम के द्वारा ओबीसी वर्ग से तीन नामों पर चर्चा चल रही है सूची में जिसमें अनिल सोनी, आयुष वर्मा और सुमित सेन के नाम बताए जा रहे हैं।
लंबे समय से राजनीति में सक्रिय है आयुष वर्मा का परिवार!
आयुष वर्मा की माता रश्मि वर्मा बीजेपी महिला मोर्चा रायपुर ग्रामीण की उपाध्यक्ष हैं और लगातार कुर्मी समाज की प्रदेश कार्यकारिणी का हिस्सा होते हुए नगर में वार्ड नम्बर 6 की पार्षद हैं, तिल्दा राज मनवा कुर्मी समाज की महिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी रश्मि वर्मा के कंधे पर है, इस लिहाज से अटकलें तेज है क्योंकि बीजेपी के लिए लंबे समय से यह परिवार निष्ठा बनाये हुए है, धरसींवा विधायक अनुज शर्मा सहित मंत्री टंकराम वर्मा के बहुत करीबी माने जाते हैं साथ ही समाज और राजनीति में एक अच्छा सामंजस्य इस परिवार का रहा है।
पुरानी बस्ती खरोरा से उम्मीदवारी तय कर देती है 50% जीत!
नगर खरोरा में पुरानी बस्ती खरोरा, जनसंख्या की दृष्टि से एक बड़ा क्षेत्र है ऐसे में इस इलाके से अध्यक्ष की उम्मीदवारी आधी जीत का पर्याय माना जाता है क्योंकि यह इलाका नगर खरोरा की सबसे पुरानी बसाहट है इस लिहाज से भी इस क्षेत्र से राजनीतिक दलों की उम्मीदवारी चयन उन्हें फायदा पहुंचाने वाली होती है ऐसे में देखना होगा कि भाजपा इस रणनीति का कितना लाभ ले पाती है।