
रायपुर। छत्तीसगढ़ में लिव इन रिलेशनशिप मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है. ऐसे मामलों में महिलाएं पुरुषों के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा देती थीं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के बाद इस तरह के मामलों में महिलाएं बलात्कार का अपराध दर्ज नहीं कर सकती. छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग ने लिव इन रिलेशनशिप को कुसंस्कृति मानते हुए लोगों को इसके दुष्परिणाम को लेकर जागरूक करने की बात कही है. इतना ही नहीं, अयोग ने इससे संबंधित कानून की जानकारी शिक्षा के रुप में देने की सिफारिश भी की है. इसके लिए शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री को पहल करने की बात भी महिला आयोग ने की है.
लिव इन रिलेशनशिप एक कुसंस्कृति
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉक्टर किरणमयी नायक ने लिव इन रिलेशनशिप के दुष्परिणामों से लड़कियों और महिलाओं को आगाह किया है. उन्होंने कहा है कि यह कुसंस्कृति है, जो तेजी से बढ़ रही है. लिव इन रिलेशनशिप में बिना विवाह के युवक युवती या फिर अधेड़ उम्र के लोग एक साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं. लेकिन कुछ सालों बाद जब एक दूसरे पर शादी के लिए दवाव डाला जाता है. यदि कोई एक पक्ष इसके लिए तैयार नहीं होता है, तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी जाती है.
खासकर महिलाएं ऐसे मामलों में पुरुष पर बलात्कार का अपराध दर्ज कराती थी.लेकिन अब इन मामलों में महिलाएं बलात्कार का अपराध दर्ज नहीं कर सकती , हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामले पर स्पष्ट उल्लेख किया है यदि आप अपनी रजामंदी और सहमति से संबंध में हैं, तो आप बाद में उसके आधार पर बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकती हैं. महिला आयोग में लिव-इन रिलेशनशिप के एक-दो नहीं बल्कि कई मामले आए हैं, जब से वे आयोग में आई हैं, इस तरह के मामलों की संख्या काफी बढ़ी है. ऐसे कई मामलों में जेनुइन शिकायत पर महिलाओं को रिलीज दिलाई गई है, लेकिन जहां लगता है कि महिलाओं ने परेशान करने के नीयत से शिकायत की है, उस पर उन्हें फटकार भी लगाई है- डॉ किरणमयी नायक, अध्यक्ष महिला आयोग
डॉ किरणमयी नायक ने तेजी से बढ़ रहे लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों पर चिंता जाहिर की है. इस पर कैसे रोक लगाई जा सकती है. इस पर विचार करने की बात कही है. किरणमयी नायक का कहना है कि हमारे पास ऐसी कोई स्थिति नहीं है. जिसमें हम इस पर रोक लगा सके. क्योंकि इस मामले में हर प्रदेश के हाई कोर्ट ने अलग-अलग निर्णय दिए हैं. इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे लेकर जागरूक किया जाए, जिससे महिलाएं, लड़कियां, बालिकाएं,बढ़ती उम्र की बच्चियों अपने परिवार की जिम्मेदारी के प्रति सजग हो और ऐसे किसी भी गलत परंपरा को बढ़ावा ना दें.
डॉ किरणमयी नायक ने कहा कि जितने भी कानून केंद्र या राज्य में पास होते हैं, उनके पास होते ही उसकी जानकारी आम जनता को हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि हकीकत में ऐसा होता नहीं है. लेकिन आप यह कह कर बच नहीं सकते कि आपको कानून की जानकारी नही थी. डॉ किरणमयी नायक ने कहा कि समाज में जो चीजें फैल रही हैं, कुसंस्कृति आ रही है, उसको दूर करने के लिए जितना जागरूक करने की कोशिश की जाए, वह कम है. ऐसी स्थिति में शिक्षा के माध्यमों में इन चीजों को डालना मैं उचित मानती हूं, इसके लिए देश या प्रदेश स्तर पर एक अच्छी कमेटी होनी चाहिए. कानून मंत्री एवं मुख्यमंत्री को इस ओर प्रयास करना चाहिए.
बच्चों को दी जाए कानून की जानकारी
डॉ किरणमयी नायक ने कहा कि छोटी क्लास के बच्चों से लेकर बढ़ती उम्र के बच्चों के बीच स्टेप बाय स्टेप हर तरह के कानून की जानकारी दी जाए. इसकी शुरुआत ट्रैफिक रूल बताने से की जा सकती है. इसके बाद बढ़ती उम्र के अनुसार झगड़ा मारपीट लड़ाई के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी दी जा सकती है. डॉ किरणमयी नायक में कहा कि नाबालिग बच्चों के लिए ऐसे प्रावधान नहीं है कि उन्हें सजा दी जाए. उसके लिए बाल न्यायालय होते हैं. लेकिन यही बच्चे बड़े होकर जिम्मेदार नागरिक बनते हैं. ऐसे में कानून की पढ़ाई उनके मोरल स्टडी में जोड़ दी जाए, तो इसका बहुत फायदा मिल सकता है.