
तिल्दा। आज नेवरा में मारवाड़ी समाज का 16 दिवसीय लोकप्रिय पर्व गणगौर महोत्सव, गणगौर विसर्जन के साथ संपन्न हो गया. इससे पहले सोमवर की सुबह से ही महिलाओं ने सज-धज कर पूरे विधि-विधान के साथ ईसर और गौरा की पूजा की फिर पूजा-अर्चना के बाद व्रत खाेला. बड़ों का आशीर्वाद लिया. शाम को गणगौर को पानी पिला कर विसर्जन किया. उत्सव को लेकर नवविवाहितों में खासा उत्साह था. पहली बार व्रत करने वाली नवविवाहिताओं ने पूरे सोलह शृंगार के साथ अपने 16 दिवसीय पर्व को पूरा किया. नवविवाहित सोनी ने बताया कि मेरी शादी इसी साल हुई है. यह मेरा पहला गणगौर है, जिसे लेकर बहुत उमंग है.गणगौर पर्व के आखिरी दिन शहर में चारों ओर गौर-गौर गणपति- ईसर पूजे पार्वती, लोकगीत गूंजायमान होता रहा. अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज के घरों और मोहल्ले में मां पार्वती स्वरूप गणगौर माता का पूजन किया गया और अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं आखिरी दिन का व्रत रखकर 16 दिवसीय गणगौर की पूजा करके विसर्जन किया.. शाम को श्री राधा कृष्ण मंदिर नेवरा से गणगौर को फूलों से सजी पालकी में बिठाकर बाजे गाजे के साथ यात्रा निकाली गई. गणगौर की पालकी का जगह-जगह स्वागत किया गया.
इस मौके पर सुहागिनों ने घूमर नृत्य की प्रस्तुति भी दी. नगर भ्रमण के बाद गणगौर माता की पालकी नेवरा तालाब पहुंची जहां विधि विधान के साथ गणगौर माता की पूजा कर विसर्जन किया गया.बता दे कि गणगौर का शुभारंभ होलिका दहन के अगले दिन से शुरू होता है।16 दिन तक भगवान शिव व माता पार्वती की उपासना व्रती करती हैं। इस पर्व में होलिका दहन की राख महत्वपूर्ण होती है। कई व्रती सामूहिक रूप से गणगौर स्थापित कर पूजन करती हैं। गणगौर के अंतिम दिवस सभी व्रती विधि विधान से पूजन कर संध्या समय तालब घाट पर जाकर गणगौर को प्रवाहित करती है.पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि गणगौर यह गण और गौर दो शब्दों से मिलकर बना है. जहां गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती से है दरअसल गणगौर पूजा शिव पार्वती को समर्पित है इसीलिए इस दिन महिलाओं द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है। इसे गोरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है, मानयता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्रप्ति होती है भगवान शिव जैसा पति प्राप्त करने के लिए अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत करती है।