
हेमन्त कुमार साहू,
दंतेवाड़ा : प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी नल जल योजना, जिसका मकसद हर घर तक शुद्ध पेयजल पहुँचाना था, दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में एक बड़े घोटाले और सरकारी लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। 12 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुई मलंगीर नाला और मदाढ़ी नाला से किरंदुल तक पेयजल आपूर्ति की परियोजना न केवल असफल रही, बल्कि इसके अवशेष अब खंडहर और कचरे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं। किरंदुल की जनता आज भी पाइपलाइन में पानी का इंतज़ार कर रही है, लेकिन सवाल यह है कि 12 करोड़ रुपये का क्या हुआ? क्या यह राशि अधिकारियों की फाइलों में हजम हो गई, या नाले के पानी के साथ बह गई?
10 साल पहले शुरू हुई थी महत्वाकांक्षी योजना
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) ने करीब एक दशक पहले मलंगीर नाला से किरंदुल तक पेयजल आपूर्ति के लिए एक भव्य परियोजना की शुरुआत की थी। योजना के तहत पाइपलाइन बिछाकर शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जाना था। लेकिन यह परियोजना शुरू होने के कुछ समय बाद ही ठप हो गई। इसके बाद, मदाढ़ी नाला से किरंदुल और आसपास की ग्राम पंचायत कोडेनार तक पानी लाने की वैकल्पिक योजना बनाई गई। इसके लिए कड़मपाल में एक फ़िल्टर हाउस का निर्माण भी किया गया, जिसकी लागत लाखों रुपये थी। साथ ही, किरंदुल और कोडेनार में पाइपलाइन बिछाने का काम भी शुरू हुआ।
स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि जल्द ही उनके घरों में नल से शुद्ध पानी आएगा। लेकिन सालों बीत गए, न तो पानी आया और न ही परियोजना पूरी हुई। कड़मपाल का फ़िल्टर हाउस आज खंडहर में तब्दील हो चुका है।
नाले में दबी पाइपलाइन, सफाई भी हुई मुश्किल
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि ग्राम पंचायत कोडेनार में पाइपलाइन को नाले में ही बिछा दिया गया। यह पाइपलाइन न तो पानी लाने के काम आई, बल्कि नाले की सफाई को भी असंभव बना दिया। वर्षों तक नाले में कचरा जमा होता रहा, और जब हाल ही में ग्राम पंचायत ने नाले की सफाई शुरू की, तो हैरान करने वाला खुलासा हुआ। नाले के अंदर पाइपलाइन बिछी हुई थी, जो कचरे और मलबे से पूरी तरह दब चुकी थी।
12 करोड़ रुपये कहाँ गए? हमारी पंचायत को जवाब चाहिए।
स्थानीय निवासी शांति बाई ने बताया, “हमें सालों से पानी का इंतज़ार है। पाइप बिछे हुए देखकर खुशी हुई थी, लेकिन अब तो लगता है कि यह सब सिर्फ़ दिखावा था।” 12 करोड़ का हिसाब माँग रही है जनता किरंदुल और कोडेनार की जनता अब सवाल उठा रही है कि 12 करोड़ रुपये की इस परियोजना का क्या हुआ? क्या यह राशि सिर्फ़ कागज़ों पर खर्च हुई? क्या अधिकारियों और ठेकेदारों ने मिलकर इस योजना को जानबूझकर विफल किया? कड़मपाल के खंडहर फ़िल्टर हाउस और नाले में दबी पाइपलाइन इस बात का सबूत हैं कि परियोजना पर काम शुरू तो हुआ, लेकिन उसे पूरा करने की कोई मंशा नहीं थी।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजेश ठाकुर ने आरोप लगाया, “यह एक बड़ा घोटाला है। 12 करोड़ रुपये की परियोजना का कोई अता-पता नहीं। न तो पानी आया, न ही कोई जवाबदेही। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत से यह पैसा हजम कर लिया गया। हम इसकी जाँच की माँग करते हैं।”
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की चुप्पी
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के स्थानीय अधिकारियों से जब इस बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “परियोजना में कई तकनीकी और प्रशासनिक समस्याएँ आईं, जिसके कारण यह पूरी नहीं हो सकी। लेकिन अब इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की जा रही है।” हालाँकि, यह “कोशिश” कितनी गंभीर है, यह देखना बाकी है।
पानी की किल्लत से जूझ रही जनता
किरंदुल और कोडेनार के निवासियों के लिए पानी की किल्लत आज भी एक बड़ी समस्या है। कई परिवारों को दूर-दराज के हैंडपंप या नदियों से पानी लाना पड़ता है। खासकर गर्मियों में स्थिति और गंभीर हो जाती है। 12 करोड़ की परियोजना के बावजूद लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होना सरकारी विफलता का जीता-जागता सबूत है।
स्थानीय निवासी मंगलू राम ने कहा, “हमारे बच्चे और महिलाएँ हर दिन पानी के लिए घंटों भटकते हैं। अगर सरकार ने 12 करोड़ खर्च किए हैं, तो वह पानी कहाँ है? हमें सिर्फ़ खोखले वादे मिले हैं।”
क्या होगी जाँच, क्या मिलेगा न्याय?
किरंदुल की जनता अब इस परियोजना की उच्च स्तरीय जाँच की माँग कर रही है। लोग चाहते हैं कि 12 करोड़ रुपये के खर्च का हिसाब दिया जाए और दोषी अधिकारियों व ठेकेदारों पर कार्रवाई हो। सामाजिक संगठनों और स्थानीय नेताओं ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की बात कही है।
जल जीवन मिशन के तहत हर घर तक नल से जल पहुँचाने का दावा करने वाली सरकार के लिए यह मामला एक बड़ा सवाल बन गया है। क्या दंतेवाड़ा की इस विफल परियोजना की जाँच होगी? क्या किरंदुल और कोडेनार के लोगों को कभी नल से शुद्ध पानी मिलेगा? या फिर यह 12 करोड़ रुपये की कहानी सिर्फ़ कागज़ों और नालों में ही दफन रह जाएगी?
आगे क्या?
यह मामला न केवल सरकारी लापरवाही और संभावित भ्रष्टाचार को उजागर करता है, बल्कि ग्रामीण भारत में पेयजल आपूर्ति की चुनौतियों को भी सामने लाता है। किरंदुल की जनता के सवालों का जवाब देना अब लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और छत्तीसगढ़ सरकार की ज़िम्मेदारी है। अगर इस परियोजना को फिर से शुरू नहीं किया गया और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह नल जल योजना के प्रति लोगों का भरोसा और कम कर देगा।
अब देखना यह है कि क्या इस खंडहर बन चुके फ़िल्टर हाउस और नाले में दबी पाइपलाइन की कहानी में कोई नया मोड़ आएगा, या यह 12 करोड़ की परियोजना हमेशा के लिए एक रहस्य बनी रहेगी। किरंदुल की जनता इंतज़ार में है—पानी का, जवाब का, और इंसाफ का।