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CG News: अपोलो अस्पताल के फर्जी डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ एक और शिकायत, इलाज में लापरवाही से गई कारोबारी के पिता की जान

बिलासपुर। जिले के अपोलो अस्पताल में कार्यरत रहे पूर्व कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डॉ. नरेंद्र जॉन केम की करतूतों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। दमोह में फर्जी डिग्री के आधार पर डॉक्टर बनकर काम करने वाले नरेंद्र पर अब बिलासपुर में भी इलाज में लापरवाही और धोखाधड़ी का नया मामला दर्ज हुआ है।

कारोबारी सुरेश टुटेजा ने की शिकायत

कारोबारी सुरेश टुटेजा ने सरकंडा थाना में दर्ज कराई अपनी शिकायत में बताया कि वर्ष 2006 में उन्होंने अपने पिता भगतराम टुटेजा को पेट दर्द की शिकायत पर बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया था। वहां डॉ. नरेंद्र जॉन केम ने उनके पिता का इलाज हृदय रोग के तौर पर शुरू कर दिया। इलाज के दौरान हुई गंभीर लापरवाही के चलते उनके पिता की मृत्यु हो गई।

पुलिस ने दर्ज की एफआईआर

शिकायत के आधार पर सरकंडा पुलिस ने आरोपी डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 465, 466, 468, 471 (फर्जी दस्तावेज बनाना व इस्तेमाल करना), 304 (गैर इरादतन हत्या) और 34 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है। पुलिस अब आरोपी से पूछताछ के लिए दमोह जाएगी, जहां वह पहले से ही इलाज में लापरवाही के मामले में गिरफ्तार है।

अपोलो अस्पताल प्रबंधन भी घेरे में

इस मामले में अपोलो अस्पताल प्रबंधन को भी आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि अस्पताल ने बिना दस्तावेजों की जांच के फर्जी डॉक्टर को नौकरी दी, जिससे मरीज की जान चली गई। पुलिस अब अस्पताल प्रबंधन की भूमिका की भी गहन जांच कर रही है।

दमोह में हुआ था बड़ा खुलासा

दमोह के मिशनरी अस्पताल में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने डॉ. नरेंद्र जॉन केम के नाम से फर्जी डिग्रियों के दम पर नौकरी हासिल की थी। जनवरी-फरवरी 2025 के बीच उसने 15 से अधिक हार्ट सर्जरी की, जिनमें से 8 मरीजों की मौत हो चुकी है। जांच में खुलासा हुआ कि उसकी एमडी और कार्डियोलॉजी की डिग्रियां फर्जी हैं, और इनमें कोई वैध रजिस्ट्रेशन नंबर भी दर्ज नहीं है।

फर्जीवाड़े की परतें खुल रही हैं

नरेंद्र के पास जो एमबीबीएस की डिग्री है, वह आंध्र प्रदेश मेडिकल कॉलेज की बताई गई है, लेकिन उसके बाद की तीनों विशेषज्ञ डिग्रियां—कोलकाता, दार्जिलिंग और यूके से प्राप्त बताई गईं—पूरी तरह से संदिग्ध पाई गई हैं। इन डिग्रियों का कोई रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड नहीं है।इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य सेवाओं में दस्तावेज सत्यापन की कमजोर प्रक्रिया को भी उजागर कर दिया है। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग अब इस मामले की हर पहलू से जांच में जुटे हैं।

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