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कुकुरमुत्ते की तरह अवैध शराब का कारोबार: आबकारी विभाग की नाकामी या मिलीभगत?

किरंदुल/बचेली में कुकुरमुत्ते की तरह अवैध शराब का कारोबार: आबकारी विभाग की नाकामी या मिलीभगत?

हेमन्त कुमार साहू, 

दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल शहर में इन दिनों एक ऐसा वाकया सामने आया है, जो न केवल चिंताजनक है, बल्कि स्थानीय लोगों, खासकर महिलाओं के लिए हंसी का पात्र बन गया है। जिला आबकारी विभाग ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत दावा किया है कि किरंदुल में एक भी अवैध शराब कोचिया की दुकान संचालित नहीं हो रही है और सभी ऐसी दुकानों को बंद कर दिया गया है। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। किरंदुल की गलियों में कुकुरमुत्तों की तरह अवैध शराब की दुकानें खुलेआम फल-फूल रही हैं, और यह कारोबार न केवल युवाओं की जिंदगी को तबाह कर रहा है, बल्कि परिवारों को बर्बादी के कगार पर ला रहा है।

अवैध शराब का खुला खेल

किरंदुल के वार्ड नंबर 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 10, 15, 17 और 18 में अवैध शराब की दुकानें साफ तौर पर देखी जा सकती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये दुकानें न केवल खुलेआम शराब बेच रही हैं, बल्कि इनके संचालक बिना किसी डर या भय के अपने कारोबार को चला रहे हैं। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इन कोचिया दुकानों के संचालक आबकारी विभाग के अधिकारियों को मोटी रकम अदा करते हैं, जो हर महीने लाखों रुपये में होती है। इस रकम के बदले, इन दुकानों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह स्थिति उस कहावत को सटीक सिद्ध करती है— “जब सैंय्या भये कोतवाल, तो डर काहे का?”

आबकारी विभाग की कार्रवाई: सिर्फ दिखावा?

सूचना के अधिकार के तहत जिला आबकारी विभाग के अधिकारी इकबाल खान ने दावा किया कि किरंदुल में सभी अवैध शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया है। लेकिन स्थानीय लोगों, खासकर महिलाओं के लिए यह बयान मजाक से ज्यादा कुछ नहीं। पिछले एक साल में आबकारी विभाग ने सिर्फ तीन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है, और वह भी महज दिखावे के लिए। यह कार्रवाई इतनी नाकाफी है कि अवैध शराब का कारोबार बेरोकटोक चल रहा है।

किरंदुल की गलियों में हर मोड़ पर शराब की बिक्री हो रही है। वार्ड नंबर 6 में तो हालात इतने बदतर हैं कि महिलाओं का वहां से गुजरना भी मुश्किल हो गया है। शराबियों की भीड़ और गलियों में सजने वाली शराब की महफिलें न केवल सामाजिक माहौल को खराब कर रही हैं, बल्कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रही हैं।

युवाओं और परिवारों पर पड़ता असर

अवैध शराब का यह कारोबार किरंदुल के युवाओं को नशे की गहरी खाई में धकेल रहा है। सैकड़ों परिवार इस नशे की लत के कारण बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं। कई घरों में कमाने वाले युवा शराब की लत में अपनी कमाई को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे परिवारों को आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। महिलाएं बताती हैं कि उनके पति, बेटे और भाई इस नशे के जाल में फंस चुके हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण है आसानी से उपलब्ध होने वाली अवैध शराब।

स्थानीय निवासी राधा (नाम बदला हुआ) ने बताया, “हमारे वार्ड में हर गली में शराब बिक रही है। बच्चे और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। रात को गलियों में शराबियों की भीड़ लगी रहती है। आबकारी विभाग को सब पता है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती।”

आबकारी विभाग की चुप्पी और सवाल

आबकारी विभाग की इस निष्क्रियता पर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या यह महज लापरवाही है, या इसके पीछे कोई गहरी सांठगांठ है? विश्वसनीय सूत्रों का दावा है कि अवैध शराब का यह कारोबार बिना प्रशासनिक संरक्षण के इतने बड़े पैमाने पर चल ही नहीं सकता। विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से शराब माफिया बेखौफ होकर कारोबार कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में बढ़ती नशाखोरी और अपराधों को भी बढ़ावा दे रही है।

सामाजिक और नैतिक क्षति

किरंदुल में अवैध शराब का यह कारोबार केवल कानूनी अपराध तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक और नैतिक क्षति का कारण भी बन रहा है। खासकर वार्ड नंबर 6, 10, और 15 में महिलाओं का कहना है कि शराब की दुकानों के आसपास का माहौल इतना असुरक्षित हो गया है कि वे दिन के समय भी वहां से गुजरने में डरती हैं। बच्चे भी इन गलियों से डरते हैं, क्योंकि शराबी अक्सर गाली-गलौज और मारपीट में लिप्त रहते हैं।

इसके अलावा, अवैध शराब की बिक्री से होने वाली आय का उपयोग अन्य अपराधों को बढ़ावा देने में भी हो सकता है। नशे की लत में फंसे युवा आसानी से अपराध की दुनिया में कदम रख सकते हैं, जिससे समाज में अराजकता और बढ़ेगी।

प्रशासन से अपील

किरंदुल की जनता अब प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग कर रही है। स्थानीय महिलाएं और सामाजिक संगठन चाहते हैं कि आबकारी विभाग इस मामले में गंभीरता दिखाए और अवैध शराब की दुकानों को पूरी तरह बंद करे। साथ ही, उन अधिकारियों के खिलाफ जांच हो, जो इस कारोबार को संरक्षण दे रहे हैं।

स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता अनिल साहू (नाम बदला हुआ) ने कहा, “यह शराब का कारोबार सिर्फ पैसे का खेल नहीं है, यह हमारे बच्चों और परिवारों की जिंदगी से खिलवाड़ है। अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो आने वाली पीढ़ी को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।”

निष्कर्ष : किरंदुल में अवैध शराब का कारोबार एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो न केवल कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहा है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर कर रहा है। आबकारी विभाग की निष्क्रियता और संदिग्ध भूमिका इस समस्या को और गहरा रही है। अब समय है कि जिला प्रशासन और आबकारी विभाग इस मुद्दे पर सख्त कदम उठाए, ताकि किरंदुल की गलियों से शराब की यह महामारी खत्म हो और लोग सुरक्षित माहौल में जी सकें। यदि यह स्थिति यूं ही चलती रही, तो यह चुप्पी एक दिन इतिहास में शर्म के रूप में दर्ज होगी।

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