जमीन घोटाला मामला : जिंदा महिला को मरा बताकर कर जमीन का नामांतरण, तहसीलदार निलंबित

जमीन घोटाला मामला : जिंदा महिला को मरा बताकर कर जमीन का नामांतरण, तहसीलदार निलंबित
सरगुजा। सरगुजा संभाग में पदस्थ भैयाथान के तहसीलदार संजय राठौर को आखिरकार उनके भ्रष्ट आचरण और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की कीमत चुकानी पड़ी। संभाग आयुक्त नरेंद्र दुग्गा ने तहसीलदार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। तहसील कार्यालय में पद का दुरुपयोग, रिश्वतखोरी, फर्जी दस्तावेज, व्यक्तिगत बयानबाजी और कार्यालय में बर्थडे पार्टी करने जैसे आरोपों से घिरे राठौर के खिलाफ यह कार्रवाई तब हुई जब एक बुजुर्ग महिला की शिकायत में गंभीर तथ्य सामने आए।
बुज़ुर्ग महिला को मृत दिखाकर हड़प ली जमीन
ग्राम कोयलारी की निवासी शैल कुमारी दुबे ने तहसीलदार संजय राठौर और अपने सौतेले पुत्र वीरेंद्र दुबे पर यह गंभीर आरोप लगाया था कि सांठगांठ करके उन्हें “मृत” घोषित कर दिया गया और उनकी निजी जमीन (खसरा नंबर 344) का नामांतरण जबरन कर दिया गया। तहसीलदार ने इस जमीन को उनके सौतेले पुत्र के नाम पर चढ़ा दिया।
जांच में यह साबित हुआ कि यह प्रक्रिया फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई और तहसीलदार ने पूर्ण मनमानी दिखाई। रिपोर्ट में यह भी साफ हुआ कि तहसीलदार ने जानबूझकर नियमों का उल्लंघन किया।
खबरें छापने पर पत्रकारों को धमकाने की फिराक में थे
बताया जा रहा है कि तहसीलदार राठौर मीडिया के सवालों और रिपोर्टों से इतने असहज हो गए थे कि उन्होंने मानहानि और समाचार खंडन के लिए पत्रकारों को नोटिस भेजने की तैयारी कर ली थी। लेकिन इससे पहले ही उन्हें निलंबन का आदेश थमा दिया गया। राठौर खुलेआम यह भी कहते पाए गए कि “मेरे खिलाफ पोर्टल वाले लिखते हैं, उन्हें कोई जानता नहीं,” मगर जैसे ही पत्रकारों ने साक्ष्यों के साथ रिपोर्ट छापी, तहसीलदार की तथाकथित “मैनेजमेंट” ध्वस्त हो गई।
ऑफिस में बर्थडे पार्टी, फोटो वायरल
संजय राठौर की कार्यप्रणाली पर तब और सवाल उठे जब भैयाथान तहसील कार्यालय में उनके जन्मदिन की पार्टी मनाने और केक काटने की तस्वीरें वायरल हुईं। सरकारी कार्यालयों में इस तरह की गतिविधियां न सिर्फ अनुशासनहीनता बल्कि भ्रष्ट मानसिकता को उजागर करती हैं। जनता और वादीगण सालों से कार्यालय में पेशियों के लिए खड़े रहते हैं, वहीं साहब जन्मदिन मना रहे थे।
अब होगी आपराधिक जांच?
संभागायुक्त द्वारा निलंबन के आदेश के साथ ही इस पूरे मामले में आपराधिक जांच की संभावना भी बढ़ गई है। क्योंकि यदि किसी जीवित व्यक्ति को मृत बताकर संपत्ति का हनन किया गया है तो यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही बल्कि दंडनीय अपराध भी है।
सवालों के घेरे में “वीरेंद्र दुबे गिरोह”
इस पूरे प्रकरण में तहसीलदार के करीबी माने जाने वाले वीरेंद्र दुबे, कमलेश दुबे और शिवम दुबे की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। स्थानीय लोग इसे “कालिया और उसके साथी” की तर्ज पर भ्रष्टाचार का नेटवर्क मान रहे हैं। अब जब संरक्षक खुद गिर गया, तो उसके संरक्षितों का क्या होगा — यह स्वाभाविक सवाल बन गया है।