
पद्मश्री डॉ. सुरेन्द दुबे का निधन, 2018 में उड़ी थी मौत की झूठी खबर — तब खुद लिखी थी ये मज़ेदार कविता
रायपुर। छत्तीसगढ़ी भाषा के मशहूर हास्य कवि और पद्मश्री सम्मानित डॉ. सुरेन्द दुबे का आज निधन हो गया। बताया जा रहा है कि उन्होंने रायपुर के ACI अस्पताल में अंतिम सांस ली। अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान हार्ट अटैक आने से उनका निधन हो गया। उनके जाने से पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है।
डॉ. सुरेन्द दुबे अपने खास अंदाज़ और चुटीले व्यंग्य के लिए पूरे देशभर में लोकप्रिय थे। मंचों से लेकर टीवी तक उनकी कविताओं ने लाखों दिलों को हंसाया।
साल 2018 में उड़ी थी मौत की झूठी खबर
दिलचस्प बात ये है कि साल 2018 में भी एक बार उनके निधन की झूठी खबर वायरल हो गई थी। दरअसल, राजस्थान के एक कवि जिनका नाम भी सुरेन्द्र दुबे था, उनका निधन हो गया था। इसी दौरान अफवाह फैल गई कि छत्तीसगढ़ के डॉ. सुरेन्द दुबे नहीं रहे।
इस अफवाह के बाद खुद डॉ. दुबे ने इस पर एक मजेदार कविता लिखी थी, जिसे वो अक्सर कवि सम्मेलनों में सुनाते थे।
झूठी मौत की खबर पर डॉ. दुबे की लिखी थी ये मज़ेदार कविता
> मेरे दरवाजे पर लोग आ गए,
यह कहते हुए की दुबे जी निपट गे भैया,
बहुत हंसात रिहीस..
मैं निकला बोला- अरे चुप,
यह हास्य का कोकड़ा है, ठहाके का परिंदा है,
टेंशन में मत रहना बाबू टाइगर अभी जिंदा है।
डॉ. दुबे ने अपनी पत्नी और मरघट वाले के संवाद को भी कविता में इस अंदाज़ में पिरोया था कि लोग सुनकर लोटपोट हो जाते थे।
> एक आदमी उदास दिखा,
मैंने पूछा तो बोला- मरघट की लकड़ी वाला हूं,
बोला- वहां की लकड़ी वापस नहीं हो सकती,
आपको तो मरना पड़ेगा नहीं तो मेरे 1600 रुपए का नुकसान हो जाएगा।
मैंने कहा- अरे टेंशन मत ले पगले, टाइगर अभी जिंदा है।
आज जब वास्तव में यह दुःखद खबर आई, तो पूरे छत्तीसगढ़ सहित देशभर के साहित्य प्रेमी स्तब्ध हैं।
हास्य की दुनिया का चमकता सितारा हमेशा याद रहेगा। हास्य कविता को नई ऊंचाई देने वाले डॉ. सुरेन्द दुबे का जाना हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके लेखन और मंचीय प्रस्तुति का जादू लंबे समय तक याद किया जाएगा।