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नक्सल क्षेत्र में रक्षाबंधन का अनोखा जश्न! छात्राओं ने सुरक्षा बल के जवानों को बांधी राखी

नक्सल क्षेत्र में रक्षाबंधन का अनोखा जश्न! छात्राओं ने सुरक्षा बल के जवानों को बांधी राखी

सुकमा। नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में जहां आमतौर पर गोलियों की आवाज गूंजती रहती है, वहां इस बार रक्षाबंधन के पवित्र धागों ने माहौल को पूरी तरह बदल दिया। सुरक्षा के कड़े पहरे और तनावपूर्ण ड्यूटी के बीच छात्राओं और गांव की महिलाओं ने सुरक्षा बल के जवानों के साथ राखी का त्योहार मनाया।

सुबह से ही महिलाएं और बच्चियां रंग-बिरंगी राखियां, तिलक की थाली और मिठाइयों के साथ सुरक्षा बल के कैंप पहुंचीं। घर-परिवार से दूर रहने का दर्द जवानों के चेहरों पर साफ झलक रहा था, लेकिन जैसे ही बहनों ने उनके हाथों में राखी बांधी, उनकी आंखों में खुशी और अपनापन भर आया। कई जवानों ने बताया कि वे वर्षों से अपने घर पर राखी के मौके पर नहीं जा पाए, लेकिन यहां उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे वे अपने ही परिवार के बीच हैं।

हस्तनिर्मित राखियों का विशेष महत्व
इस बार की राखियां खास थीं क्योंकि सभी बहनों ने इन्हें अपने हाथों से तैयार किया था। छात्राओं ने बताया कि यह कदम उन्होंने इसलिए उठाया ताकि सुरक्षा में डटे इन भाइयों को अपनेपन का एहसास दिला सकें। पहली बार सभी छात्राओं ने राखियां बनाकर सीमावर्ती इलाकों में तैनात सेना के जवानों को भी भेजी हैं, जो देश की सुरक्षा में लगे होने के कारण अपने घर नहीं जा पाते।

छात्रा सुरभि यादव ने भावुक होकर कहा, “ये जवान दिन-रात हमारी सुरक्षा के लिए खतरे उठाते हैं। हम भले खून के रिश्ते से न जुड़े हों, लेकिन राखी का धागा उन्हें हमारा भाई बना देता है।”
एक अन्य छात्रा ने कहा, “जवान हमारी रक्षा कर रहे हैं, तो हमने सोचा इन्हें ही अपना भाई मान लें, ताकि इन्हें अपनी बहनों की कमी महसूस न हो।”

जवानों की भावनाएं भी छलकीं

  • इंस्पेक्टर कमलेश कुमार मीणा (74 वाहिनी) ने कहा, “कई सालों से घर जाकर राखी नहीं बंधवा पाया था, लेकिन यहां बहनों का प्यार हमेशा याद रहेगा। हम क्षेत्र की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।”

  • जवान महेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा, “हम भले परिवार से दूर हैं, लेकिन इन बहनों के स्नेह ने हमें अपनेपन का अहसास कराया।”

  • 74 वाहिनी के कमांडेंट हिमांशु पांडे ने कहा, “यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हमारा रिश्ता सिर्फ वर्दी और जिम्मेदारी का नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का भी है।”

नक्सल प्रभावित इलाकों में ऐसे त्योहार न केवल सुरक्षा बल और ग्रामीणों के बीच विश्वास बढ़ाते हैं, बल्कि भाईचारे और अपनापन की मिसाल भी पेश करते हैं।

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