
- जानिए 36 गढ़ का 36 वर्षीय 36 गढ़िया मंत्री गुरु खुशवंत साहेब का मंत्री बनने तक की सफर
- छत्तीसगढ़ की नई पहचान
भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ केवल प्राकृतिक संसाधनों से ही समृद्ध नहीं, बल्कि यहां की संस्कृति, परंपरा और समाजिक चेतना भी अद्वितीय है। यही धरती 36 गढ़ों की पहचान से जानी जाती है और आज वही 36 गढ़ एक बार फिर गौरवान्वित है, अपने युवा मंत्री गुरु खुशवंत साहेब पर, जिन्होंने सिर्फ 36 साल की उम्र में छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नई मिसाल कायम की। यह कहानी केवल एक मंत्री की नहीं, बल्कि त्याग, सेवा और धर्मगुरु परंपरा की है। जानिए
गुरु खुशवंत साहेब जी का जीवन सफर देवेंद्र निराला की कलम से….
बचपन और प्रारंभिक जीवन
गुरु खुशवंत साहेब का जन्म छत्तीसगढ़ की उसी मिट्टी में हुआ जिसने सदियों से संतों, समाज सुधारकों और योद्धाओं को जन्म दिया है। बचपन से ही उनका स्वभाव गंभीर, सौम्य और सेवा-भाव से भरा रहा। साधारण जीवन जीते हुए भी उनके भीतर असाधारण नेतृत्व क्षमता दिखाई देती थी।खेलकूद और पढ़ाई दोनों में वे संतुलित रहे, लेकिन समाज की समस्याओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता उन्हें बचपन से ही अलग बनाती थी। उनके मित्र रामजी वर्मा सहित अन्य लोग कहते हैं –जब हम सब खेलने में व्यस्त रहते, खुशवंत हमेशा किसी जरूरतमंद की मदद करने के लिए तैयार रहते थे.उनके पिता के बताए मार्ग पर ही चलते थे. इधर हम खेलते थे उधर ओ छत्तीसगढ़ को, समाज को, सर्व समाज को, बेहतर से बेहतर बनाने की सोच में डूबे रहते थे।
शिक्षा और व्यक्तित्व निर्माण
गुरु खुशवंत साहेब की शिक्षा ने उन्हें आधुनिक दृष्टिकोण दिया, वहीं घर-परिवार के संस्कारों ने उन्हें धर्म और परंपरा से जोड़े रखा। पढ़ाई के दौरान वे नेतृत्व क्षमता के लिए जाने जाते थे। हमेशा सत्य, समानता और भाईचारे की बात करते।
स्कूल और कॉलेज के समय से ही सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। युवावस्था तक आते-आते उनका व्यक्तित्व इस तरह निखर गया कि लोग उन्हें गुरु के साथ भविष्य का नेता कहने लगे थे।
धर्मगुरु वंश से मिला संस्कार
गुरु खुशवंत साहेब जी का सबसे बड़ा गौरव यह है कि वे परम पूज्य धर्मगुरु गुरु बालदास साहेब के सुपुत्र हैं। घर में धर्म, न्याय और मानवता का वातावरण। सतनामी समाज की विरासत और गुरु घासीदास बाबा जी के आदर्श। परिवार से मिला यह संस्कार कि राजनीति पद पाने का साधन नहीं, समाज सुधार का माध्यम है। इस आध्यात्मिक आशीर्वाद ने उन्हें औरों से अलग बना दिया।
अविवाहित जीवन – संपूर्ण समर्पण जनता को
जहां राजनीति में अक्सर परिवारवाद और व्यक्तिगत स्वार्थ देखने को मिलता है, वहीं गुरु खुशवंत साहेब ने अविवाहित रहकर जनता को ही अपना परिवार माना। वे कहते हैं – मेरे लिए छत्तीसगढ़ ही परिवार है। उनका यह त्याग उन्हें सिर्फ मंत्री नहीं, बल्कि सेवक और संरक्षक की पहचान देता है।
संघर्ष की राह
गुरु खुशवंत साहेब का सफर आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में उन्हें भी राजनीतिक चुनौतियों और विरोध का सामना करना पड़ा। परंतु उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जनता के बीच लगातार उपस्थिति और सेवा ने ही उन्हें मंत्री पद तक पहुंचाया।
जनता से जुड़े प्रसंग
गुरु खुशवंत साहेब जी के जीवन में अनेक ऐसे किस्से हैं जो उनकी संवेदनशीलता और जनता से गहरे जुड़ाव को दिखाते हैं–जिसमें संस्कार,शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार,उद्योग इत्यादि है
राजनीति में नई सोच
गुरु खुशवंत साहेब राजनीति को केवल सत्ता नहीं, बल्कि सेवा मानते हैं। उनकी सोच बिल्कुल साफ है – शिक्षा व कौशल विकास – ताकि कोई भी युवा बेरोजगार न रहे।
स्वास्थ्य सेवा – गांव-गांव तक आधुनिक सुविधाएँ पहुंचे।
कृषि व किसान – छत्तीसगढ़ का किसान आत्मनिर्भर बने।
महिला सशक्तिकरण – हर महिला आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत हो। सामाजिक न्याय – समाज का कोई भी वर्ग उपेक्षित न रहे। उनकी प्राथमिकताएँ बताती हैं कि वे केवल आज की राजनीति नहीं, बल्कि आने वाले कल का छत्तीसगढ़ गढ़ रहे हैं।
Vision 2030 – भविष्य की दृष्टि
गुरु खुशवंत साहेब का लक्ष्य केवल मंत्री पद तक सीमित नहीं। वे छत्तीसगढ़ को 2028 तक भारत का अग्रणी राज्य बनाना चाहते हैं।
उनका Vision 2028 इस प्रकार है –
हर गांव तक शिक्षा और स्वास्थ्य।
हर युवा के लिए कौशल और रोजगार।
कृषि को तकनीक से जोड़कर आत्मनिर्भर किसान।
सामाजिक समानता और भाईचारा।
पर्यटन, संस्कृति और अध्यात्म का वैश्विक प्रचार।
वे चाहते हैं कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाए।
छत्तीसगढ़ से भारत तक
गुरु खुशवंत साहेब का प्रभाव अब केवल प्रदेश तक सीमित नहीं रहा। उनकी ईमानदारी, सादगी और विचारधारा राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय है। उनका मॉडल बताता है कि कैसे धर्म, परंपरा और आधुनिकता का संगम राजनीति को नया रास्ता दिखा सकता है।
इतिहास में स्वर्णिम नाम
गुरु खुशवंत साहेब का जीवन केवल राजनीति की कहानी नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा का प्रतिबिंब है।
36 गढ़ का बेटा।
36 साल की उम्र।
36 गढ़िया मंत्री।
धर्मगुरु का सुपुत्र।
अविवाहित त्याग और सेवा का प्रतीक।
संघर्षों से निकला जननायक।
और भविष्य का प्रेरणास्रोत।
वे आज छत्तीसगढ़ के गौरव है।