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‘बच्चे की मां एचआईवी पाजिटिव है’ अस्पताल ने लगाया पोस्टर, हाईकोर्ट ने जमकर लगाई फटकार..

‘बच्चे की मां एचआईवी पाजिटिव है’ अस्पताल ने लगाया पोस्टर, हाईकोर्ट ने भी जमकर लगाई फटकार..

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने रायपुर के डाभीमराव आंबेडकर स्मृति चिकित्सालय में एचआइवी पाजिटिव महिला मरीज की पहचान सार्वजनिक करने की घटना पर कड़ी नाराजगी जताई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव से व्यक्तिगत शपथपत्र मांगा है। कोर्ट ने कहा कि यह कृत्य न केवल अमानवीय है बल्कि नैतिकता और निजता के अधिकार का घोर उल्लंघन है। मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी।

दरअसल, 10 अक्टूबर को मीडिया में आई खबर में बया गया कि रायपुर के डाभीमराव आंबेडकर अस्पताल में नवजात शिशु के पास एक पोस्टर लगाया गया, जिसमें यह लिखा था कि बच्चे की मां एचआईवी पाजिटिव है। रिपोर्ट के मुताबिक यह पोस्टर गाइनो वार्ड में भर्ती मां और नर्सरी वार्ड में रखे नवजात बच्चे के बीच लगाया गया था। जब बच्चे का पिता अपने शिशु को देखने पहुंचा तो उसने यह पोस्टर देखा और भावुक होकर रो पड़ा। कोर्ट ने इस मामले को तत्काल संज्ञान में लेते हुए सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय आचरण है, जिसने न केवल मां और बच्चे की पहचान उजागर कर दी बल्कि उन्हें सामाजिक कलंक और भविष्य में भेदभाव का शिकार भी बना सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह कार्य सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य के इतने प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह रोगियों के साथ अत्यधिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करे। एचआइवी/एड्स जैसे सामाजिक रूप से संवेदनशील मामलों में पहचान उजागर करना गंभीर चूक है। मामले में कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे 15 अक्टूबर 2025 तक व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट किया जाए कि सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कालेजों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की गोपनीयता सुनिश्चित करने की वर्तमान व्यवस्था क्या है। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के क्या कदम उठाए गए हैं। डाक्टरों, नर्सों और पैरा-मेडिकल स्टाफ को कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने के लिए भविष्य में क्या उपाय प्रस्तावित हैं। कोर्ट ने कहा- दोबारा ऐसी गलती न दोहराई जाए।

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