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पवन कुमार गर्ग, रवि कुमार गर्ग और रामजीत सिंह कुशवाहा पर झूठी FIR को हाईकोर्ट ने किया खारिज, बताया सिविल विवाद को आपराधिक रंग देने का प्रयास

पवन कुमार गर्ग, रवि कुमार गर्ग और रामजीत सिंह कुशवाहा पर झूठी FIR को हाईकोर्ट ने किया खारिज, बताया सिविल विवाद को आपराधिक रंग देने का प्रयास

बिलासपुर। माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में धोखाधड़ी की झूठी प्राथमिकी (FIR) को खारिज कर दिया है, जिसमें याचिकाकर्ताओं पर जमीन की रजिस्ट्री न कराने के आरोप लगाए गए थे। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला सिविल प्रकृति का है, न कि आपराधिक। याचिकाकर्ता पवन कुमार गर्ग, रवि कुमार गर्ग और रामजीत सिंह कुशवाहा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर, थाना गोबरा नवापारा में दिनांक 09.01.2025 को दर्ज एफआईआर (क्र. 12/2025) को चुनौती दी थी। FIR में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 34 के तहत आरोप लगाए गए थे।

प्रकरण में यह बात सामने आई कि याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी सुनील अग्रवाल, कन्हैया अग्रवाल सौरभ खेतान प्रसन्न नीले समेत अन्य व्यक्तियों के साथ लगभग 15 एकड़ जमीन के विक्रय का अनुबंध 47 लाख प्रति एकड़ की दर से किया था, जिसमें 1.4 करोड़ अग्रिम लिया गया था।

अनुबंध के अनुसार, रजिस्ट्री 6 महीने के भीतर होनी थी और याचिकाकर्ताओं ने अपनी ओर से भूमि डाइवर्जन सहित सभी प्रक्रिया पूर्ण कर दी थी, लेकिन खरीदारों ने रजिस्ट्री नहीं करवाई। इसके पश्चात अनुबंध स्वतः निरस्त हो गया। निर्धारित समय पर रजिस्ट्री न करने पर याचिका कर्ता द्वारा बकाया राशि वापस करने के लिए कहा गया परन्तु खरीदार द्वारा इस संदर्भ में कोई चर्चा नहीं की।

याचिका कर्ता रवि गर्ग के अनुसार एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद जमीन का मुल्य कई गुना बढ़ गए तब खरीदार द्वारा पुराने अनुबंध के अनुसार रजिस्ट्री करने के लिए दबाव बनाया परंतु अनुबंध में समयावधि समाप्त होने के कारण रजिस्ट्री करने से इनकार किया तो खरीदार द्वारा थाने में FIR कर दबाव बनाने का प्रयास किया परंतु मामले की सुनवाई के उपरान्त न्यालय दुध का दूध और पानी का पानी हो गया। प्रतिवादी द्वारा दर्ज की गई FIR को याचिकाकर्ताओं ने एक दबाव बनाने की रणनीति बताते हुए इसे झूठा और दुर्भावनापूर्ण कहा। हाईकोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायाधीश बिभु दत्ता गुरु शामिल थे, ने सभी तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा के बाद कहा कि-“केवल बिक्री अनुबंध के पालन न होने से आपराधिक मामला नहीं बनता। सिविल विवाद को आपराधिक रंग देना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला देते हुए FIR को खारिज कर दिया और कहा कि इस प्रकार के मामलों में अदालतों को सतर्क रहना चाहिए।

प्रमुख बिंदुः

FIR केवल अनुबंध न निभाने के कारण दर्ज की गई थी, कोई धोखाधड़ी नहीं पाई गई।

हाईकोर्ट ने FIR को निरस्त कर, याचिकाकर्ताओं को राहत दी।

न्यायालय ने सिविल विवादों को आपराधिक मुकदमा बनाने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई।

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